भवरोगकी रामबाण दवा | Bhavrogki Ramban Dawa

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Bhavrogki Ramban Dawa by हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सहिष्णुता १५ चाहिये ।” भगवान्‌ने इनके वेगको रोक रखनेवाे पुरुषोको टी युक्तः ओर सुखी बतलाया है । शाक्रोतीदैव यः सोढ़ं प्राक्शरीरविमोक्षणात्‌ । #॥ कामक्रोधोद्धवं' वेगं स युक्तः स खुखी नरः ॥ ( गीता ५।२२) 'जो मनुष्य शरीरसे निकलनेके पहले ही इन काम-क्रोधसे उत्पन वेगको , सह सकता है ( रोक सकता है ) छोकमें वही युक्त है और वही सुखी है | इन वेगोको न सहकर इनके प्रवाहे बह जनेसे कितने-करितने भारी अनर्थं ओर अपराध दो जाते हैं; किस प्रकार अनन्तकाक ओर अनन्त योनियोके छिये दुःखभोगकी कारणरूपा दुष्कर्मराशिका मनुष्य संग्रह कर लेता है, इसपर धीरतापूर्वक विचार करते ही कलेजा कॉप उठता है । इन वेगोंको सहनेका उपाय है---'भोगोंमें वैराग्य और भगवानमे अनुराग ।” भोगोंमें विराग हुए बिना भगवानमें अनुराग नहीं होता, और भगवानमे अनुराग होनेपर भोगोमें राग रह नहीं सकता । जिसने उस पूर्णकाम प्राणाराम सौन्दये-माघुय और ऐ्वर्यकी अनन्त भचिन्त्य निधि भगवानका खपरमे भी विचारसे भी दर्शन प्राप्त कर लिया, वह फिर किस छुखका , कामी होगा * बह तो सढाके लिये अपना सर्वठ उस अखिल ` सौन्दय॑सारसागर, दिव्यातिदिव्य-माघुर्यनिधि प्राणप्रियतम हृदयबन्धुके चरणोंमें समपंण कर देता है । जब कोई दूसरा ही नहीं रहता तब दूसरे किसीके छिये उसमें कामकी वासना ही कैसे रह सकती है । जब अखिल विश्व उसे विश्वात्मासे परिपूर्ण दीखता है, जब विश्वरूपमें वही प्रकट दीखता है, तब कोई किसपर किस प्रकार क्रोध कर सकता है ! '




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