भवरोगकी रामबाण दवा | Bhavrogki Ramban Dawa
श्रेणी : आयुर्वेद / Ayurveda
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
174
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सहिष्णुता १५
चाहिये ।” भगवान्ने इनके वेगको रोक रखनेवाे पुरुषोको टी
युक्तः ओर सुखी बतलाया है ।
शाक्रोतीदैव यः सोढ़ं प्राक्शरीरविमोक्षणात् ।
#॥ कामक्रोधोद्धवं' वेगं स युक्तः स खुखी नरः ॥
( गीता ५।२२)
'जो मनुष्य शरीरसे निकलनेके पहले ही इन काम-क्रोधसे
उत्पन वेगको , सह सकता है ( रोक सकता है ) छोकमें वही युक्त
है और वही सुखी है | इन वेगोको न सहकर इनके प्रवाहे बह जनेसे
कितने-करितने भारी अनर्थं ओर अपराध दो जाते हैं; किस प्रकार
अनन्तकाक ओर अनन्त योनियोके छिये दुःखभोगकी कारणरूपा
दुष्कर्मराशिका मनुष्य संग्रह कर लेता है, इसपर धीरतापूर्वक विचार
करते ही कलेजा कॉप उठता है । इन वेगोंको सहनेका उपाय
है---'भोगोंमें वैराग्य और भगवानमे अनुराग ।” भोगोंमें विराग हुए
बिना भगवानमें अनुराग नहीं होता, और भगवानमे अनुराग होनेपर
भोगोमें राग रह नहीं सकता । जिसने उस पूर्णकाम प्राणाराम
सौन्दये-माघुय और ऐ्वर्यकी अनन्त भचिन्त्य निधि भगवानका
खपरमे भी विचारसे भी दर्शन प्राप्त कर लिया, वह फिर किस छुखका ,
कामी होगा * बह तो सढाके लिये अपना सर्वठ उस अखिल `
सौन्दय॑सारसागर, दिव्यातिदिव्य-माघुर्यनिधि प्राणप्रियतम हृदयबन्धुके
चरणोंमें समपंण कर देता है । जब कोई दूसरा ही नहीं रहता तब
दूसरे किसीके छिये उसमें कामकी वासना ही कैसे रह सकती है ।
जब अखिल विश्व उसे विश्वात्मासे परिपूर्ण दीखता है, जब विश्वरूपमें
वही प्रकट दीखता है, तब कोई किसपर किस प्रकार क्रोध कर सकता है ! '
User Reviews
No Reviews | Add Yours...