श्री कल्पसूत्र | Shri Kalpasutra
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
432
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)£| भथमे तीर्थकरके 'इडोसनमें साघुओको साधुधर्म समझना 'कठिनथा: परन्तुसमझनेसे वे.उसे अच्छी तरह से
| पालन करते ये! अहावीरस्वामीके शासनम साघुओकों साधुधर्म' समझना सहज हे- परंतु पाठन करना
कठिंनहे' ओर घाइंस तीर्थकरोकि दासनमें साधु साध्वियोंको साधघुधर्म समझना व पाठन करना दोरनोही सुठभये.
|| उज्जुजडा पढसा खेछु; नंडाइनायाओ डुंति नायव्वा॥ वक्कजंडा पुंण चरिमा,; उज्जुपफ्णा सज्झिसा लणिआ ॥ ७-१
21: ' प्रथम तीर्थकरके' शासनमें-साधु' ऋजु-जड ( सरल अर मुख » हैति थे, उनको जितना समझाते' थे
८ उतनी स्क्षते ये परन्तु-अधिक नहीं समझतेथे तथा मंहांवीरस्वासीके दासनमें साधु-वक्र-जड ( उद्धत और
द मूंखे' ) होतेहें वे संमझानेंसे' समझते नहीं परन्तु उल्टी कुर्तकं ' करने लगते हैं और घाइस. तीर्थकरोंके शासः
दर नमें सच ऋजष्प्रीस ( सरल थ बुद्धिमान )' होते' थे उनको थोडासा' संमझानेसे वे बहुत समझनकेते थे । इस
| सिये - २४ सीर्थकररौके साधुओके आचारम भिन्नता बतलाई हैः ॥ ७ ॥ अब उनके यहांपर दृष्ांत कहते हैं:---
धकः नगरमे साधुः सगं भोवरी रयिथे, बाजार पुरूषोंका नाटक देखने रुगे. बहुत देरीसे आहार केकर
| उपाशमम आयें । युरुने पूछा आज लुमको इतनी देर क्यों ठगी? साधुओंने' कहा आज' नाटक देखने रने
।
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