चीन में तेरह मास | Chin Me Terah Maas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
336
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)समुद्र यात्रा । ७
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हिन्दुस्तान की फौजों में यह चाल देखने में आई है कि हिन्दुस्तानी सिपा-
हियाोँ की अपेक्षा गोरे सिपाहियों को एक द्रजा उन्तमतर हथियार दिये जते
हैं॥ अधिक दुरकी वात तो सुझे याद नहीं है अभी उनदिनों सन, १८८६ इंस्वी
में जब दिन्दुस्तानी सिपाहियों के पास “घ्रीचलोडर” बन्दूक थी तय गोस के
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पास सार्टिनी हेनरी” और घरह्मा की लड़ाई के वाद् सन् १८८७ मे जव गोरौ को
मेगजीन वन्दुक्त दीगर तव दिन्टुस्तानियौ को ''मार्टिनी” मिली ! सो फोजी
सनातन धम हिन्द में यददी था कि गोरों की अपेक्षा काले पएकद्रजा फम-
ज़ोर दथियार पर्वे ॥
तद्जुसार हमारी फोज में भी मार्दिनी वन्दूकं थी ॥
जव ता० २७ जून १९०० ई० को चीन युद्ध याता का हुक्म मिखा तय कर्तारौ
फो यह विचार मी उपस्थित इवा कि पुरानी मदी मार्िनी चन्दुक लेकर कालि
काले सिपाही जब संसार भर की दक्तियों के साथ साथ ( चाजू व चाजू ) ल-
इने चलेंगे तय हमारी ( घिटनकी ) देदी अव्य दोगी । दमारे दथियारों के भ-
देपनपर खी अवश्यदी उडगी ॥
यदी सोच विचारकरः सनातनधमे की भी परवाह छोडकर (जैसे आजकल
वदुतिरे पढ़े लिखे छोग निज भद्देपनके “ रिफा्म ” ( सुधार ) पर उद्यत दोजाते
दं मौर खुधार करदी छोड़ते हैं ) हमारी फौज को चही गोरी चन्दुक “ ली
मेरफोड ” उन्हीं पांच छः दिनों के द्रभियान येन केन प्रकारेण वार दी
राई थी ॥
यस वदी चन्दूकें लेकर दम छोग जहाजपर सवार: हुये थे ॥
यद्यपि वन्टूक चाना न्दौ जानते थे । पर कवायद और मस्केटरी ( इदम
गोडन्द्ाङी ) जानने वारीपरफोज के खिये यष्ट छुटि पक वहुत सामान्य सी थी ॥
मस्केटरी:के.थियोरी और, प्रिन्सपेठ,( अख संचालन चिदया ओर उदेश्य ) जा-
ननेवाडे रोगों को केवर हथियार के नमुना भोतरकी तचदीटी कुर विदोप
यज्ञ की सापेक्ष न थी । तौभी पएकादिवार अभ्यास करना-गोखी चाकर
देख लेनाˆआचदयकरी था । तदञ्ुसार जदाज पर दोनो वक्त सिखलाई की परेड
होने ठगी ! चकते इये जहाज के पिखाडी उक्ते इये पानी पर टीन या का-
गज के पुछन्दे फेंककर उन्हींपर निशाना और फायर की शिक्षा दी जाने ठगी ॥
कहा जाता था कि तमाम यूरोप की शक्तियां जो चीन को चवाने चढ़ी हैं
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