सम्पूर्ण गांधी वाड्मय भाग - 77 | Sampurn Gandhi Vadmay Bhag - 77

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पाठकोंको सुचना हित्दीकी जो सामग्री हमें गांधीजी के स्वाक्षरोंमें मिली है, उसे अविकल रूपमें दिया गया है किन्तु दूसरों दवारा सम्पादित उनके भाषण अथवा लेख 'आदिमें ट्विज्जों की स्पष्ट भूलें सुघार दी गई हूँ। अंग्रेजी और गुजरातीसे अनुवाद करते समय उसे यथासम्भव मूलके समीप रखने का पूरा प्रयत्न किया गया है, किन्तु साथ ही भाषाकों सुपाठ्य बनाने का भी पररा ध्यान रखा गया है। जो अनुवाद हमें प्राप्त हो सके है, उनका हमने मूलसे मिलान और संशोधन करने के बाद उपयोग किया है ¦ नामोको सामान्य उच्चारणोंके अनुसार ही लिखने की नीतिका पालन किया गया है। जिन नामोके उच्चारणमें संशय था, उनको वैसा ही लिखा गया है जैसा गाघीजी ने अपने गुजराती लेखोंमें लिखा है। मूल सामग्रीके बीच चौकोर कोष्ठकों में दिये गये अंश सम्पादकीय हैं। गांघीजी ने किसी लेख, भाषण भादिका जो अंश मूल रूपमें उद्धत किया है, वह हाशिया छोड़कर गहरी स्याहीमें छापा गया है। लेकिन यदि ऐसा कोई अंश उन्होंने अनूदित करके दिया है तो उसका हिन्दी अनुवाद हारिया छोड़कर साधारणं टादषमं ` छापा गया है! माषणोकी परोक्ष रिपोटं तथा वे न्द जो गाधीजीके कटे हुए नही है बिना हाशिया छोड़े गहरी स्याही छापे गये है! भाषणों गौर्‌ भेटकी रिपोटके उन अंशोंमें जो गांधीजी के नहीं हैं, कुछ परिवर्तन किया गया है और कहीं-कह्दीं कुछ छोड़ भी दिया गया है। थ शीर्षककी लेखन-तिथि 'दायें कोनेमें ऊपर दे दी गई है, लेकिन जिन लेखों, टिप्पणियों आदिंके अन्तमें लेखन-तिथि दी गई है उनमें उसे यथावत्‌ रहने दिया गया है। जहाँ वह उपलब्ध नहीं है, वहाँ अनुमानसे निश्चित तिथि चौकोर कोष्ठकोंमें दी गई है, और आवश्यक होने पर उसका कारण स्पष्ट कर दिया गया है। जिन पत्रोंमें केवल मास या व्षका उल्लेख है, उन्हें प्रसंगानुसार मौस तथा वर्षके अन्तमें रखा गया है1. शीर्वकके अन्तमें साधन-सुत्रके साथ दी. गई तिथि प्रकाशन की है। गांधीजी की सम्पादकीय टिप्पणियाँ और लेख, जहाँ उनकी लेखन-तिथि -उपलब्ध है अथवा जहाँ किसी दृढ़ आधघारपर उनका अनुमान किया जा सका है, वहाँ लेखन- तिथिके अनुसार और जहाँ ऐसा सम्भव नही हुआ है, वहाँ उनकी प्रकादान-तिथिके अनुसार दिये गये है। श




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