गुजरात के नाथ | Gujarat Ke Nath
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
456
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चृक्षके नीचेके दो पुरुष १३
जरा तिरत्कारके साथ उस बडे मनुप्यने पूछा, ” कौन हैं ? ”
काकंने कहा, « सेनापति उथकं ओर युवराज नरवर्मा । »
उत्तरमे वह मनुष्य खिलखिलाकर हँस पढ़ा और यह पहली ही बार
काकको मादम हुआ कि उसका दास्य आकप्पक था ।
काकके हाथमे नगी तलवार थी; पर उसकी परवाह किये दिना वह मनुष्य
उसके पास आया । उसने शान्तिसे उसके कन्बेपर दाथ रखा जीर पूषा,
५ तूने कभी मुंजाल मेहताका नाम सुना है!”
काके कुछ भी न समझ सका । उसने कहा, ५ हो 1“
तो मेरा ही नाम मुंजाल मेहता है।””
काक दो कदम पीछे हट गया । उसकी बुद्धि कुंढित दो गई । उसे लगा
क्रि पृध्वी फट जाती जीर वह उसमे समा जाता, पर न तो पृध्वी ररी ओर
न उसे स्थान मिला । फिर भी उसे ऐसा जरर प्रतीत हुआ कि स्थान देनेके
लिए जैसे वह चक्रकी भांति घूमने लगी दो । उसने यह किसका अपमान
किया ! वह किसके साथ मिड पडा ! पाठणके नगरसेठ और महाअमात्य,
नरिभुवनपालके मामा और राज्यमे जयसिंह देवसे भी अधिक सत्ता रखनेवाले
महापुरुषके साथ |
८ प्रभु | क्षमा 1»
काकको इसी घवडाहयमं पडा ओढकर मुजार मेहता आगे वड गये ।
परन्तु काक हाथमे आई वाजीको छोडनेवाडा न था । वह एकदम रास्ता
रोककर खडा हो गया और बोला, “ प्रभु, मुझे क्षमा कीजिए, । परन्तु इसका
विश्वास क्या कि आप मुंजाल मेहता ही हैं ! यदद समय वडा विकट है, इस-
लिए भूल भुलावेमे चाहें जिसे पाटणमें जाने देना अच्छा नहीं है । ”
सही है। जच्छा, चलो मेरे साथ ।--सॉझी, तुम भी चलो । ” ी
स्व लोग साथ साथ चरु पे । काकं विचारमे पड गया करि यदि यह
मुंजाल मेहता हो, तो यह साथवाला युवक कौन है १ क्या तये जयरसिंहदेव !
उसे यह प्रसंग स्वप्न जैसा मादम होने लगा । काक विचार करता हुआ
पीछे पीछे चलने लगा कि इस ध्रृपरताके लिए; मुंजाल मेहता उसे क्या दंड
देंगे । आख़िर ये सब पाटणके एक वाजूके दरवाजेपर जा पहुँचे ।
* कुंडी खटखटाओ । ” सुंजालने हुक्म दिया ।
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