गुजरात के नाथ | Gujarat Ke Nath

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Gujarat Ke Nath  by रघुनाथ देसाई - Raghunath Desai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चृक्षके नीचेके दो पुरुष १३ जरा तिरत्कारके साथ उस बडे मनुप्यने पूछा, ” कौन हैं ? ” काकंने कहा, « सेनापति उथकं ओर युवराज नरवर्मा । » उत्तरमे वह मनुष्य खिलखिलाकर हँस पढ़ा और यह पहली ही बार काकको मादम हुआ कि उसका दास्य आकप्पक था । काकके हाथमे नगी तलवार थी; पर उसकी परवाह किये दिना वह मनुष्य उसके पास आया । उसने शान्तिसे उसके कन्बेपर दाथ रखा जीर पूषा, ५ तूने कभी मुंजाल मेहताका नाम सुना है!” काके कुछ भी न समझ सका । उसने कहा, ५ हो 1“ तो मेरा ही नाम मुंजाल मेहता है।”” काक दो कदम पीछे हट गया । उसकी बुद्धि कुंढित दो गई । उसे लगा क्रि पृध्वी फट जाती जीर वह उसमे समा जाता, पर न तो पृध्वी ररी ओर न उसे स्थान मिला । फिर भी उसे ऐसा जरर प्रतीत हुआ कि स्थान देनेके लिए जैसे वह चक्रकी भांति घूमने लगी दो । उसने यह किसका अपमान किया ! वह किसके साथ मिड पडा ! पाठणके नगरसेठ और महाअमात्य, नरिभुवनपालके मामा और राज्यमे जयसिंह देवसे भी अधिक सत्ता रखनेवाले महापुरुषके साथ | ८ प्रभु | क्षमा 1» काकको इसी घवडाहयमं पडा ओढकर मुजार मेहता आगे वड गये । परन्तु काक हाथमे आई वाजीको छोडनेवाडा न था । वह एकदम रास्ता रोककर खडा हो गया और बोला, “ प्रभु, मुझे क्षमा कीजिए, । परन्तु इसका विश्वास क्या कि आप मुंजाल मेहता ही हैं ! यदद समय वडा विकट है, इस- लिए भूल भुलावेमे चाहें जिसे पाटणमें जाने देना अच्छा नहीं है । ” सही है। जच्छा, चलो मेरे साथ ।--सॉझी, तुम भी चलो । ” ी स्व लोग साथ साथ चरु पे । काकं विचारमे पड गया करि यदि यह मुंजाल मेहता हो, तो यह साथवाला युवक कौन है १ क्या तये जयरसिंहदेव ! उसे यह प्रसंग स्वप्न जैसा मादम होने लगा । काक विचार करता हुआ पीछे पीछे चलने लगा कि इस ध्रृपरताके लिए; मुंजाल मेहता उसे क्या दंड देंगे । आख़िर ये सब पाटणके एक वाजूके दरवाजेपर जा पहुँचे । * कुंडी खटखटाओ । ” सुंजालने हुक्म दिया ।




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