पुरुषार्थी जीवन | Purusharthi Jeevan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
170
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)8 महात्मा गांधी
खियोंसे अपना सम्बस्थ न स्थापित करेगा । माको भी अपने
इस युवक बेटेकी सरछता और सत्यता पर विश्वास था । उसने
उसे बिठायत जानेकी आशा दे दी, और वह चठ पड़ा; अपनी
सात्विक बृत्तिको लेकर उस विछायतकी ओर: जहाँके मालुषिक-
जीवनका अधिकांश अस्तित्व शराब और माँस ही के ऊपर
निमैर-सा रहता दै।
कैसी विचित्र थी उसकी प्रतिज्ञा, कितना पुरुषां था उसकी
प्रतिज्ञांमें जो उसकी इस प्रतिज्ञाको सुनता, बह हस देता ।
कहता; तुम्हारी यह प्रतिज्ञा निजी अज्ञानतासे भरी हुई है।
विढछायती जीवनमें हुम इसका निर्वाइ न कर सकोगे; न पाठ
सकोगे ! किन्तु उसे अपने आत्म-बढपर विश्वास था। उसके
सरछ हृदयमें जो दृढ़ शक्ति विद्यमान थी; उसीके प्रोत्साइनसे
उसका मन प्रतिक्षण प्रोत्साहित-सा रहा करता था । वह् अपनी
इसी दृढ़ भावना शक्तिको ढेकर जद्दाजु पर चठा जा रहा था।
जहाज पर और भी अनेक यात्री थे! थे ऐसे यात्री, जो सांसा-
रिक प्रबंचनाओंको दी जीवनका मददत्व समझे हुये थे । वदद उन्हें
घृणाकी दृष्टिसे तो न देखता; किन्तु उनसे दूर दी रहनेका प्रयास
किया करता था। वह् किसीसे बात न करता, अकेठे दी रहता
और अकेछे ही खाता-पीता था। उस जहाज पर एक अंग्रेज
यात्री भी था। भंप्रेजको युवककें इस एकान्त जीवन पर अधिक
आश्चर्य हुआ; उसने युवकसे सित्रतापूर्ण बातचीत करनी आरंभ
की। बातोंके सिलसिलेमें अंप्रेजको यह बात ज्ञात होगई, कि
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