पुरुषार्थी जीवन | Purusharthi Jeevan

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Purusharthi Jeevan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8 महात्मा गांधी खियोंसे अपना सम्बस्थ न स्थापित करेगा । माको भी अपने इस युवक बेटेकी सरछता और सत्यता पर विश्वास था । उसने उसे बिठायत जानेकी आशा दे दी, और वह चठ पड़ा; अपनी सात्विक बृत्तिको लेकर उस विछायतकी ओर: जहाँके मालुषिक- जीवनका अधिकांश अस्तित्व शराब और माँस ही के ऊपर निमैर-सा रहता दै। कैसी विचित्र थी उसकी प्रतिज्ञा, कितना पुरुषां था उसकी प्रतिज्ञांमें जो उसकी इस प्रतिज्ञाको सुनता, बह हस देता । कहता; तुम्हारी यह प्रतिज्ञा निजी अज्ञानतासे भरी हुई है। विढछायती जीवनमें हुम इसका निर्वाइ न कर सकोगे; न पाठ सकोगे ! किन्तु उसे अपने आत्म-बढपर विश्वास था। उसके सरछ हृदयमें जो दृढ़ शक्ति विद्यमान थी; उसीके प्रोत्साइनसे उसका मन प्रतिक्षण प्रोत्साहित-सा रहा करता था । वह्‌ अपनी इसी दृढ़ भावना शक्तिको ढेकर जद्दाजु पर चठा जा रहा था। जहाज पर और भी अनेक यात्री थे! थे ऐसे यात्री, जो सांसा- रिक प्रबंचनाओंको दी जीवनका मददत्व समझे हुये थे । वदद उन्हें घृणाकी दृष्टिसे तो न देखता; किन्तु उनसे दूर दी रहनेका प्रयास किया करता था। वह्‌ किसीसे बात न करता, अकेठे दी रहता और अकेछे ही खाता-पीता था। उस जहाज पर एक अंग्रेज यात्री भी था। भंप्रेजको युवककें इस एकान्त जीवन पर अधिक आश्चर्य हुआ; उसने युवकसे सित्रतापूर्ण बातचीत करनी आरंभ की। बातोंके सिलसिलेमें अंप्रेजको यह बात ज्ञात होगई, कि




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