आर्य कीर्ति | Aarya Kirti

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Aarya Kirti by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ९६ 1 भाई ! तुम पचची दैशहितैधिता का महान भाव च्रभी तक नदीं समफ़ सके घश्चिमीत्तर देशियो | तुम केवल पूज्यपाद एव का नाम इदान के लिश उत्पन्न हुए हो ! तुम्हारे सादढेतीन हाय के शरीर मै कदाचित प्राचीनकाल . के ब्राह्मण चुविवां का अंशलेशमात्र भी नदीं है ! तुम इस उदारता की महिमा क्या समभोगे ? तुम तो आश्चर्य नद्दीं जी फना को राचसी कह के घणा कते पर प्रकत देशदितैंपी और यधाध तेजस्वी इस असामाग्या धाबी को दूसरी दृष्टि से देखें में। जो कुछ पन्ना नै किया दह साधारथ लोगे का काम नरी है | साधारण लन उस के बुचत्कार्य का मइत् भी नहीं समभ्त सकते । चाय ग्राज भारव में प्ति असाधारण व्यक्ति कितने हैं ? प्रतिध्वनि प्रश्न करती दै - कितने हैं १ भारत तो आज निर्जीव एवं निश्देंध्ट हो गया है | डिन्दुस्यान बाज पांले दे मारे दूल वा करकप की भांति अपने दी चअ्तित्व मे लुक्काधित हो रहा है ! फ़िर इमारे प्रश्न का उत्तर कौन देगा? प्रतिध्वनि जिज्ञासा करती है--कौन देगा ? पतापर्सिह का वीरत्व । आज १६३२ सम्बत के थावण मास की सप्तमी है। आज राजपुताना के राजपूतगण मातुभूमि के लिए अपने प्राण देने को कटियड हैं । अकबर बादशाह के ञ्वेष्ठ पुव सलीम्र राजा मानसिंह के साध मेवाड पर अधिकार करने की मनसा से आ इं । ‡ विधर्म यवन पवित सूरिय कौ कलंदिति था # तारीख तुहफूए राजस्थान में यों लिखा हे | *एक बार गुजरात से लौटते हए अविर के कुंवर मानर्धिह ने उदयप्तागर ताछात्र पर कियाम किया, जहां / महाराणा ने पेशवा के साथ उभ की दवत की; लेकिन खाने के वक्त मानि के साथ शरीक होने की वाव्र्त महाराणा ने कुछ उच्च कहला भेजा, निप्र से वह नाराज हो कर चछा गया. संवत्‌ १६३३ मृतात्रिक सन्‌ १९७७ ईं० में इस राजश्च के सव्व मानर्षिह वाद्राही कर्कर ले कर मेवाड पर आया, और गोगंदे ॐ} तरफ़ हत्दी धट मं खमूनोर गावि के कृरौव महाराणा से सख्त मकावरुह हअ; दो पहर तक कडार हाने वाद बादङ्ञादी फौज करई कोस तक्र पहाड़ों मे. विखर गईं, केकिन इस नाजुक वक्त पर मानसिंह की गिदुविर फौज ने नद्धरह `




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