सत्संग के उपदेश [भाग तीसरा] | Satsang Ke Updesh [Bhag-Teesara]

Book Image : सत्संग के उपदेश [भाग तीसरा]  - Satsang Ke Updesh [Bhag-Teesara]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द = ५ ७००७ च न र जला (१) कहते हैं, तत्ह्लुक्त कायम करके यहाँ के प्रकाश का अनुभव _ करे और फिर दसमद्वार में, जिसे परत्रह्मपद,, चन्द्रविन्दुपद . और चन्द्रलोक भी कहते हैं, प्रवेश करके यहाँ की शान्तिमय ` ्रभा का आनन्द ले। ज़ाहिर है कि इस युक्ति के सीखने ` ओर दुसस्ती के साथ कमाने के लिये ज़रूरी है कि मलुष्य _ किसी ऐसे महापुरुप की शरण ले जिसे यह विद्या आती हैं श्र जिसने युक्ति की कमाई करके असली शान्ति का | , अनुभव किया हं । ४ 1 न या कक कक कक कक का 1 लोग कहते हैं कि अगर शब्द आत्मा का गुण है तो वह हर आत्मा को आपसे आप सुनाई देना चाहिये लेकिन । आम लोगे को अन्तरी शब्द सुनाई नहीं देता । इसमें भूल ¦ यह हे कि प्रश्न करने वाला ओर आम लोगों के शरीर का | पचन (१३) | | | 1 परभिमानी आत्मा नहीं है बल्कि जीवात्मा हैजो कि मात्मा यानी सुरत व मन की मिलौनी का परिणाम है । ्मार्मा ब जीवात्मा में जमीन आसमान का अन्तर है पर मामं लोग जीवात्मा ही को आत्मा समते हैं । अगर जीवात्मा ही आत्मा हो तो फिर आत्मज्ञान कठिन कहां रहा और उसकी प्राप्ति के लिये किसी साधन की क्या ज़रुरत रही ? जाग्रतू अवस्था में हर शख्स को ज्ञान प्राप्त . रहता है. क्योंकि हर शख्स कहता है “में खाता हूँ”, | कक कक कक ~+ -= ~~न ~~ ~




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