सत्संग के उपदेश [भाग तीसरा] | Satsang Ke Updesh [Bhag-Teesara]
श्रेणी : धार्मिक / Religious, पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
172
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)द = ५ ७००७ च न र जला
(१)
कहते हैं, तत्ह्लुक्त कायम करके यहाँ के प्रकाश का अनुभव
_ करे और फिर दसमद्वार में, जिसे परत्रह्मपद,, चन्द्रविन्दुपद
. और चन्द्रलोक भी कहते हैं, प्रवेश करके यहाँ की शान्तिमय
` ्रभा का आनन्द ले। ज़ाहिर है कि इस युक्ति के सीखने
` ओर दुसस्ती के साथ कमाने के लिये ज़रूरी है कि मलुष्य
_ किसी ऐसे महापुरुप की शरण ले जिसे यह विद्या आती
हैं श्र जिसने युक्ति की कमाई करके असली शान्ति का |
, अनुभव किया हं ।
४
1
न या कक कक कक कक का
1
लोग कहते हैं कि अगर शब्द आत्मा का गुण है तो
वह हर आत्मा को आपसे आप सुनाई देना चाहिये लेकिन ।
आम लोगे को अन्तरी शब्द सुनाई नहीं देता । इसमें भूल
¦ यह हे कि प्रश्न करने वाला ओर आम लोगों के शरीर का
|
पचन (१३) |
|
|
1
परभिमानी आत्मा नहीं है बल्कि जीवात्मा हैजो कि
मात्मा यानी सुरत व मन की मिलौनी का परिणाम है ।
्मार्मा ब जीवात्मा में जमीन आसमान का अन्तर है पर
मामं लोग जीवात्मा ही को आत्मा समते हैं । अगर
जीवात्मा ही आत्मा हो तो फिर आत्मज्ञान कठिन कहां
रहा और उसकी प्राप्ति के लिये किसी साधन की क्या
ज़रुरत रही ? जाग्रतू अवस्था में हर शख्स को ज्ञान प्राप्त
. रहता है. क्योंकि हर शख्स कहता है “में खाता हूँ”, |
कक कक कक ~+ -= ~~न ~~ ~
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