तुलसी | Tulsi

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Tulsi by इन्द्रचन्द्र नारंग

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लीवन-चरित 4 ही दीक सममत श्रौर शोल के प्रवर्तित विचारों का तिरस्कार करते । इन सव बातों का परिणाम यद्‌ हुत्रा कि समाज के विचार श्र प्राचार की स्थिति डोँबाडोल दो उटी । इस प्रकार एक शरोर बिदेशी राजशक्ति की परवलता ने भारतीय जन-समाज को चिन्न-मिन्न कर दिया था, उसके मण्डे के पीले-पीठे न्वलनेवाले उसके धर्म ने देश को क्रान्त कर रखा था, उसके धमं के प्रच्छन्न श्रक्रमण ने मानव-प्रेम की मनोमोदक फोंकी दिखलाकर लोगों को मोदित करने का इन्द्रजाल विछाया था 'और दूसरी ध्रोर धमे की इस नयी व्याख्या छौर साधारण लोगों को लुभानेवाले उसके इस रूप ने चिरकाल्ञ से प्रतिष्ठित श्रादर्शो, विश्वासो शरोर सिद्धान्तों पर प्रहार किया । इन चेछाओं का परिणाम ससाज के लिए चड़ा ही धातक सिद्ध हुआ । धार्मिक विश्वास ओौर छावरण विपयक उक्त कार्यो से समाज की एकता छिन्न-भिन्न हो गयी । इस विपम स्थिति में भी छुछ न्राइ्यणों ने त्याग और तप को अपना रखा था । उन्होंने लोकिक सुखों से सदा के लिए मुँद सोड़ लिया था । वे वेदों 'और शास्रों के ाध्ययन-झध्यापन म कालियापन करते श्रौर अपने पूव-पुरपों के सश्ित ज्ञान की र्ता करते । वे धर्म-कर्म, पूजा-पाठ, यज्ञ-जप, श्राद्ध-तर्पण, कथा-वात्ती रादि के द्वारा उस संस्कृति की धारा में जीवन दिया करते । वे देश के सभी तें से स्थापित तीर्थों की यात्रा के लिए नियत समय पर निरन्तर होने वाले समारोदों के द्वारा देश की एकता की रक्षा मे तत्पर रहते थे । इस कार जो लोग देश की विद्या, संस्कृति 'औौर एकता के मूल में युग-युग से जीवन देकर उसे हराभरा रखते थे, उन पर कुछ 'झहस्मन्य स्व॒तन्त्र- विचारक समे जानेवाले झाक्षेप करते, उनकी हँसी उडत ओर उनकी वदैतना करते । फलतः समाज की नीव खोखली द्योती जा रदी थी । समाज उस नाव के समान दो रदा था जो किसी चढ़े हुए नद के बीच मे पड़ गया दो, जिस पर चारों रोर से भयङ्कर धराधी के कारण उठने.




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