देव-रत्नावली | Dev-Ratnavali

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : देव-रत्नावली  - Dev-Ratnavali

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about प्रतापनारायण चतुर्वेदी - Pratapnarayan Chaturvedi

Add Infomation AboutPratapnarayan Chaturvedi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
देच रन्नाघली १७ < ( १३) शंत स्कै «नहिं श्ंतर कै, मिलि अंतर कै सु निरंतर धारे । उपर वाहि म ऊपर वादित, ऊपर बाहिर की^गति चारे ॥ बातन हारति बात .न द्वारति; हारति जीभ न बातन दारे। 'देदे' - रंगी सुरत्यी सुरत्यो सलु, देवर की सुरत्यी न विसारे ॥ । ( १ ) पूरन प्रेम सुधा वसुधा, | | ऊसुधारमई बसुधार सु रेखी। जीचन या व्रज आवन की, तरल जीवन जीचनमूरि विसेखी.॥ तू परमाद्धि क्प रमा,; परमानदं को परमा्नेद पेखी। नेह भरी नख. ते सिख देवर, , सदेह परे ससि मूरति देखी ॥ अंत श्कै नदि श्रौर कृष्य नहीं 'उदरती | रंगी--प्रीति } ` सस््वौ-- सूरत । व्डधारमई-ज्योतिपूं । जन जीवन-- भगवान कषस । परमावधि-- चरम सीमा ! पेखी-देखक्र ¦ (म




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now