देव-रत्नावली | Dev-Ratnavali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
114
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)देच रन्नाघली १७
< ( १३)
शंत स्कै «नहिं श्ंतर कै,
मिलि अंतर कै सु निरंतर धारे ।
उपर वाहि म ऊपर वादित,
ऊपर बाहिर की^गति चारे ॥
बातन हारति बात .न द्वारति;
हारति जीभ न बातन दारे।
'देदे' - रंगी सुरत्यी सुरत्यो सलु,
देवर की सुरत्यी न विसारे ॥
। ( १ )
पूरन प्रेम सुधा वसुधा, |
| ऊसुधारमई बसुधार सु रेखी।
जीचन या व्रज आवन की,
तरल जीवन जीचनमूरि विसेखी.॥
तू परमाद्धि क्प रमा,;
परमानदं को परमा्नेद पेखी।
नेह भरी नख. ते सिख देवर,
, सदेह परे ससि मूरति देखी ॥
अंत श्कै नदि श्रौर कृष्य नहीं 'उदरती | रंगी--प्रीति }
` सस््वौ-- सूरत । व्डधारमई-ज्योतिपूं । जन जीवन-- भगवान
कषस । परमावधि-- चरम सीमा ! पेखी-देखक्र ¦
(म
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