गांधी एक जीवनी | Gaandhii Ek Jiivanii

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Gaandhii Ek Jiivanii by कृष्ण क्रपलानी - Krisn Krplaniनरेश नदीम - Naresh Nadim

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषय-प्रवेश तेरह इससे कुछ कम सार्वभौम महत्व इस तथ्य का नहीं है कि गांधी जी जो कुछ बने उसी रूप में पैदा-नहीं हुए थे और हालांकि उन्होंने खुद को अदितीय बनाया मगर अपने आरंभिक जीवन में उन्होंने किसी ऐसी असाधारण शक्ति का परिचय नहीं दिया जो उनकी आयु के दूसरे लड़कों में न हो। उनके कुछ उल्लेखनीय समकालीनों के विपरीत उन्होंने किसी ऐसी कला-भावना से प्रेरणा नहीं पाई जैसी रवींद्रनाथ पर छा गई थी वे रामकृष्ण की तरह किसी आध्यात्मिक दृष्टि से पीड़ित नहीं थे और न ही विवेकानंद की तरह किसी घोर उत्साह से संचालित थे। वे हममें से अधिकांश की तरह एक सामान्य कोटि के बालक थे अधिकांश बालकों की अपेक्षा कम उच्छृंखल थे और ऐसी असामान्य लज्जा-भावना से ग्रस्त थे जो एक लंबे समय तक उनके जीवन की बाधा बनी रही। वे दब्बू और संकोची थे देखने में घरेलू किस्म के लगते थे अध्ययन में औसत दर्जे के.थे और आमतौर पर किसी भी प्रकार से विशिष्ट नहीं थे। बचपन या युवावस्था में उनके शारीरिक गठन या मानसिक क्षमता में ऐसा कुछ भी नहीं था जो उनके अंदर सोए पड़े ज्वालामुखी का संकेत दे। इस शांत सतह से कोई दबी दबी आवाज भी नहीं सुनाई देती थी कोई चमक या धुआं उठते कभी नहीं देखा गया कि उनके व्यक्तित्व के- अंदर जो सुलगती तलवार गढ़ी जा रही थी उसका कोई हल्का-सा सुराग भी मिले। यह सब ऐसे ही था गोया प्रकृति जिस दुर्लभ शस्त्र को चुपके चुपके गढ़ रही थी और जिसे वह बुरी नजर वालों से बचाने के लिए चिंतित थी उसे उसने ऐसी म्यान में छिपा रखा था जो इतनी साधारण किस्म की थी कि किसी की नजर उस पर नहीं जाती थी। यहां तक कि खुद म्यान को उस आग का कोई सुराग नहीं था जो उसके अंदर सुलग रही थी उस भविष्य का कोई अहसास नहीं था जो आगे आने वाला था गोया किसी शिकार पर झपटने का इंतजार कर रहा हो। देखने में मामूली लगनेवाले इस बालक में प्रतिभा की कोई चेतना नहीं थी बल्कि उसकी कोई धुंधली सी हलचल भी नहीं दिखाई देती थी एक घटनाविहीन बचपन की शांत सतह को किसी भी उच्छृंखल उत्तेजना ने नहीं झकझोरा कभी किसी उत्कट लालसा ने अवचेतन की गहराइयों से निकलकर बाहर की दुनिया नहीं देखी । परमानंदमय अबोध के सौभाग्य से परिपूर्ण इस बालक को समय से पहले पड़नेवांले उन तभावों का सामना नहीं करना पड़ा जो अनेक प्रतिभाशाली व्यक्तियों .. और पैगंबरों का निर्माण और उनका विध्वंस भी करते रहे हैं। उसे इन तनावों का सामना करना पड़ा तो तभी जब उसका मस्तिष्क परिपक्व हो चुका था और जब आंतरिक विस्फोट हुआ तो वह बहादुरी और धीरज के साथ अडिग रहकर घमंड से चूर हुए बिना और किसी से झगड़ा मोल लिए बिना उसके दबाव को झेलने की क्षमता पा चुका था।




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