हरा भरा रहे पृथ्वी का पर्यावरण | Hara Bhara Rahe Prithvi Ka Paryavaran
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
89
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सन् 1988 में यह 140 हो गई। मौसम में बदलाव तथा जैविक विविधता
के संरक्षण के लिए 150 देशों ने अलग से संधि की।
इन सब तथ्यों को देखतें हुए हमें इसकी गंभीरता को समझ लेना
चाहिए। जमीन का सीना तोड़कर उगते अनाज, फल, सब्जियों की मेहरबानी
पर ही मनुष्य का जीवन टिका हुआ है। कुछ घंटे पानी न मिले तो मनुष्य
तडफड़ाने लगता है। यदि सच कहा जाए तो सरसराती हवा, कल-कल
करती नदियां व झूमते हुए पेड़-पीधों व जानवरों का मनुष्य मेहमान है। थदि
मनुष्य इस पृथ्वी पर नहीं होगा तो ये पृथ्वी ऐसी की ऐसी ही रहेगी, हां,
इन चीजों से रहित यानी कि पर्यावरण से रहित पृथ्वी पर मनुष्य की कल्पना
भी नहीं की जा सकती ।
इसी पर्यावरण को प्रदूषित किया है फैक्टरियों से निकलने वाले
प्रदूषित धुएं व प्रदूषित द्रव ने। रसायन फैक्टरियों से निकलकर मिट्टी में
जाते है, फिर सब्जियों व अनाज के हिस्से बनकर पेट में पहुंचते हैं। इनके
विषय में बता रहे हैं सृक्ष्मनीवी-विशेषज्ञ डॉ. वी.वी मोदी :
.... कुछ कार्सीनिजेनिक रसायनों से कोशिकाएं जल्दी-जल्दी बनने लगती
हैं जिनसे कैंसर होने की संभावना रहती है।
® कु रसायन 'क्यूरोजेनिक क्यूटेंट' होते हैं जो कि शरीर के
हीमोग्लोविम को कम करने लगते हैं। साथ ही शरीर की कोशिकाओं
में पाए जाने वाले जीन्स में बदलाव आने लगता है। त्वचा की
मेलामाइन में भी बदलाव आने लगता है। इस बदलाव से कोई मरता
तो नहीं है किंतु उसकी चुस्ती में फर्क आने लगता है।
कक... कुछ टेट्रोजेनिक रसायन-जो कि कुछ दवाइयों में भी पाए जाते
है यदि पेट में पहुंच जाएं तो प्रसव-काल में बच्चों का अंग-भंग
होने की संभावना रहती है। सन् 1960 में 'शैलीडोमाइन' नाम का
एक ' ट्रेन्क्वीलाइजर ' बनाया गया था, जिसने यह प्रभाव डाला था।
गेहूं व अन्य अनाज और सब्जियों को आग पर पकाने से उनके
हानिकारक रसायन किसी हद तक नष्ट हो जाते हैं। वनस्पतियों पर कुछ
फ्यविरण एक परिचय ® 15
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