आचार्य नरेन्द्र देव | Acharya Narendra Dev

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Acharya Narendra Dev by जगदीश चन्द्र दीक्षित - Jagdish Chandra Dixit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवन के आरस्शिक दिन आचार्य नरेन्द्र देव का जम्म सीतापुर में 31 अक्टूबर , 1889 कार्तिक शुक्ल झष्टमी सम्वत 1946 को हुआ था। आतार्य नरेन्द्र देव चार भाई थे, बहने दो थी । शैशवावस्था में ही नरेन्द्र देव जी झपने पिता का सन रखने के लिए , सध्या- वन्दना और भगवंदगीता समेत्त रूद्दी का पाठ करने लगे थे। एक महाराष्ट्रीय ब्राह्मण से उन्होने सस्वर बेदपाठ की शिक्षा भी ली थीं। तुलसी कृत रामचरितमानस, हिन्दी महाभारत ओर सूर सागर के साथ अमरकोष ओर सु कौमुदी आदि को प्रौढ हयेने से पूर्वं ही वह हृदयंगम कर चुके थे! बचपन मे नरेन्द्र जी जिन व्यक्तियों के सम्पर्क में आये उनमे प्रथम पंडित मदन मोहन मालवीय थे। बाबू बल्देल प्रसाद जी मालवीय जी के सम्पर्क में सन 18588 की दिसम्बर मे उस समय आये थे जब प्रयाग में हुए कांग्रेस के चोथे अधिवेशन के समय उन्होंने काग्रेस में प्रथम बार, सीतापुर जनपद के एक प्रतिनिधि के रूप में अपने चरण रखे थे। मालवीय जी की यशोकीर्ति उन दिनो देश की हर दिशा में सुनाई देती थी। बल्देव जो और मालवीय जी के बीच इस प्रकार दिसम्बर, 1888 मे जन्म सम्बध उत्तरोत्तर प्रगाढ़ होता गया । इतिहास-पुरूष मालवीय जो का कृणपात्र बनने के दस माह बाद बल्देव प्रसाद जी को पुजलाम हुआ लेकिन उस समय नियति के इस खेत को कोई नहीं समझ सका था कि किसी सामान्य शिशु ने नहीं, बल्कि भावी इतिहास-पुरुष ने जन्म किया है। सातवीय जो लथा फिता जी के प्रभाव नें उनकी आअभिरूचि को नारकीय सस्कृति की ओर मोड़ दिया। अपनी इस आध्यात्मिक खल्ान के समय नरेन्द्र देव जी फैजाबाद में छात्र थे। मालवीय जी फैजानाद पहुँचे थे। पिता जी के छाग्रह पर नालक' नरेन्द्र ने मालवीय जी को गीता का एक पूरा अध्याय पढ़कर सुनाना पड़ा। नरेन्द्र देव जी के गीता के श्कोको के शुद्ध रस्सपनण से मालवीय जी वनन्द विभोर




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