बेगम | Begam

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Begam by शौंकत थानवी - Shaukat Thanvi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वेगम श्ट सुरेया की तरफ वढा देता था । उस रोज खाना भी सुरया ने खुद ही पकाया । खानजमान लौटा उसके दूसरे दिन । चलते वक्‍त सुरया वोली-- मोरनी के जी में पुकार जगी है, सुन रहे है * क्या कह रही हैं, कह्िए तो * --कहो, तुम्ही कहो ! सुरया ने कहा--कह रही है, “ऐ झासमान के बादल, तुम आ्राए । प्राकर मुककको नचाया । नाचते-नाचते मैं अ्रभी थकी तो नही हु, पर तुम राह चल दिए । श्रव मै श्रपना यह नाच किसे दिखाऊगी, कहो *? था कि रोते ही गुजारूमी अपने बाकी दिन ?”' अ्रली कुइली पलटा । उसके दोनो हाथों को पकड़कर कहा-- “दिलरुवा, मैं जिस नियम से झाता हु,जाता हु,उसमे फक श्राने का तो कोई उपाय नही है । वह परवाना तो उसका है, जिसके परवाने से रात के वाद दिन, दिन के बाद रात होती है । लेकिन फिर भी उपाय है-- तुम्हारे दो डने तो है । इस मिट्टी का मोह छोडकर श्रपने उन डैनो को फैला दो--मैं अपने सर्वाग मे तुम्हे लपेटकर श्रपने गरीबखाने में ले चलू । सोच लो, मिट्टी की माया काट सको, तो चलो । मै सम कया कि मेरी जिन्दगी जिंदावाद हो गई ! ” सुरया ने शेर में ही उसे फिर श्राने का झ्रामत्रण दिया । जवाब में कवि वाजा सुलतान ने अपने यहा आ्राने का दिया । सुरया अखि फाडकर उसे देखती रही । उसे गोया यकीन नही हो रहा था। म्रली कुइली ने कहा--हा, कह दो प्यारी । कह दो कि कवूल है। सुरया रो पडी | उसे अपनी छाती से लगाकर श्रली कुइली ने पूछा--सुरया'*' सुरया वोली--मैं तुम्हारी वादी हूं । मेरी प्यारी हो । जिन्दगी, मेरी किस्मत जिंदाबाद ! इसके कुछ ही दिनो बाद श्रली कुइली मे मुल्ला को बुलाया । को गवाह रखकर उससे शादी की श्रौर उसे श्रपने हरम में गया | सुरया को शुकदेव झाचायें की याद श्राई । उसने अली कुइली से




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