वेद रहस्य | Ved-rahsay
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.2 MB
कुल पष्ठ :
176
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वेद-रहस्य
देने के लिये रज-कणों को, जो हजारों की संख्या में होते हैं,
गिराती है ( वह जगह प्रायः जल की निचली तह में रेतेंली अथवा
पथरीली भूमि होती है ) तत्र उसी समय नर वहाँ पहुँचकर उन रज-
कणों पर वीये-कणों को छोड़ देता है जिससे पेट के बाहर ही गर्भ की
स्थापना होकर झरडे बनने लगते हैं ।
(२१ इसी तरह एक प्रकार के सेंढक होते हैं जो गज श्रौर वीये-
कण चाहर ही छोड़ते हैं। नर सेढक मादा सेढक की पीठ पर बेठ
जाता है जिससे मादा के छोड़ते हुये रज-कणो पर वीये-कण गिरते
जायें और इस प्रकार मेंढकी के पेट से बाहर ही, इनके अझण्डे
बना करते है ।
( ३) एक प्रकार के कीट जिन्हें देप बम ( 806 का ) कहते
हैं और जो सनुष्यो के भीतर पाचन-क्रिया की नाली (
ताछ०58107 0909) ) में पाये जाते हैं। २० हजार अण्डे एक साथ
एक कीट देता है। एक अण्डे से जन्र कीट निकलता है तो उसका एक
मात्र शिर हुकों के साथ जुड़ा हुआ होता है । ( 76 ०0०815 5107 01]
8 09. का 1007 ) उन हुको के द्वारा वे आँतो की श्लेप्मिक
( व 0 916 उ्ाडाए 6 ) से जुड़ जाता हे
ओर उसी शिर से उसका शरीर विकसित होता है और इस प्रकार
उत्पन्न हुआ शरीर 'झनेक भागों ( 368ए060७5 ) में विभक्त हो जाता
है। ये इस प्रकार संख्या ओर झाकार से वढ़ते जाते है । प्रत्येक भाग
मे स्त्री पुरुप के अंग होते हे। जिनसे स्वयमेव विना किसी चाह्म सद्दा-
यता के गर्भ की स्थापना हो जाती है । कुछ काल के चाद पुराने भाग
( ) प्रयक् होकर स्वतन्त्र कीट चन जाया करते हैं ।
इत्यादि । -
इन उदाहरणों से यद्द वात तरह समभी जा सकती दै कि
यह सचंधा सम्भव दे कि रज श्र वीर्य का सम्मेलन साता के पेर से
चादर दो उससे प्राणी उत्पन्न हो सके ।
इसी मर्यादा के श्नुसार 'अमेथुनि सष्टि में, मनुप्य का शरीर
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