वेदांत भारत की मूल संस्कृति | Vedanta Bharat Ki Mool Sanskriti
लेखक :
श्री चक्रवर्ती राजगोपालाचारी - Shree Chakravarti Rajgopalachari,
श्री सीताचरण दीक्षित - Shree Seetacharan Dixit
श्री सीताचरण दीक्षित - Shree Seetacharan Dixit
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.65 MB
कुल पष्ठ :
62
श्रेणी :
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श्री चक्रवर्ती राजगोपालाचारी - Shree Chakravarti Rajgopalachari
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श्री सीताचरण दीक्षित - Shree Seetacharan Dixit
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वेदान्त का स्रोत थ
अथवा द्कान से खरीद कर पुस्तकें पढ़ना उस समय संभव नहीं
था ।
वेदान्त में थिव अथवा विष्ण की उपासना के पृथक
पंथ नहीं हैं । कौन बड़ा देव है या किस नाम से परमात्मा
की लपासना करनी चाहिए--इन प्रदनों का बिदाद वेदान्त
में नहीं पाया जाता । दांकराचार्य ने अपने वेदान्त-भाष्य में पर-
मात्मा के लिए “नारायण नाम का प्रयोग किया है । दौब-सिद्धांत
के ग्रंथों में परमतत्त्व को 'दिव' कहा गया हैं । माम, ध्यान
के छिए. परमंदवर के रूप की कल्पनाएं, पूजा की मुतियां और
5 की ध्वनि भी हमारे हृदय को ईस्वर के प्रति आकर्षित
करने के साधन-मात्र हैं । बेदान्त हम सब भारहीयों की--चाहे
हम किसी भी धर्म में ाछित-पोषित बयां ने हुए हो-नपरंपशागत
सामान्य सम्पत्ति है ।
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