चिकित्सा प्रशिक्षण का सहज पाठ | Chikitsaa Sahitya Ka Sahaj Path

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Chikitsaa Sahitya Ka Sahaj Path by विश्वमित्र शर्मा - Vishwamitra Sharmaसुश्रुत आचार्य - Sushrut Aachary

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विश्वमित्र शर्मा - Vishwamitra Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वैज्ञानिक व तकनीकी विकास के साथ-साथ उपचारिकाओं का कार्य और भी जटिल होता जा रहा है-उन्हें नए-नए उपकरणों का ज्ञान हासिल करना पड़ता है ताकि वे उनका सही उपयोग कर सकें । योग्य चिकित्सक की अनुपस्थिति मे उपचारिका को कभी-कभी अपात्‌कालीन चिकित्सा सहायता भी करनी पड़ सकती है (जैसे अपस्मारी दौरा या मूर्छित होने में, भावनात्मक रूप से उत्तेजित रोगी को सांत्वना दने में, निरंतर अत्यधिक नकसीर फूटने को रोकने में, इत्यादि) आपतुकालीन चिकित्सा सहायता का व्यावहारिक ज्ञान रखने वाली उपचारिका को अधिक योग्य समझा जाता है तथा वह किसी भी बहिरंग रोगी विभाग या चिकित्सालय के लिए एक मूल्यवान कर्मी होती है। उपचारिका के कार्य में रोगियों की देख-भाल में तनिक भी त्रुटि तथा लापरवाही निपिद्ध है। अपनी जिम्मेदारियों के विशिष्ट गुणों को निभाने के लिए चिकित्सा कं कुशल संपादन में उपचारिका को अनवरत अध्ययन तथा कार्य संपदान में उत्कृप्टता की आवश्यकता होती है । उपचारिका के लिए विशेष रूप से प्रकाशित पत्रिकाओं, चिकित्सा संबंधी पुस्तकों, और यहाँ तक कि चिकित्सकों, उनके सहायकों, उपचारिकाओं के कार्यकलापों तथा जीवन संबंधी कथा-साहित्य का भी, अध्ययन उपचारिकाओं को करना चाहिए, जिससे कि वे अपने व्यक्तित्व तथा शील-स्वभाव का सदुपयोग रोगियों की देखभाल करने तथा उन्हें प्रभावित करने में कर सकें । यही कारण है कि भावी उपचारिका को रोगी व्यक्ति की भावनाओं तथा उसके व्यक्तित्व के मनोविज्ञान में रुचि लेनी चाहिए । चिकित्सा कर्मचारियों के श्रम को कलात्मक होना चाहिए, जिससे सांदर्य का भान हो। इससे रोगियों की मनोदशा पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। जीवन के प्रति आस्था और प्रेम दिखानेवाली पुस्तकों को चुनना और रोगी को पढ़ने के लिए देना भी रोगी की देखभाल करने वाले कर्मचारियों का कर्तव्य है। उपचारिका के सदैव साफ-सुधरा रहना चाहिए तथा सीधी-सादी चेश-भूपा व वर्दी, सँवरी हुई टोपी पहननी चाहिए। यह ध्यान में रखना चाहिए कि प्राय रोगी चटकीली-भड़कीली वेशभूषा पहनने वाली उपचारिका का आदर नहीं करन ! जिस कमरे में रोगी का परीक्षण किया जाता है, उपचारिका को उसे यधासंभव आरामदेह बनाना चाहिए । रोगी के व्यक्तित्व-वृत, ओपधि निर्देशों क॑ फार्म तथा अन्य चिकित्सा संबंधी कागजों को करीने से डेस्क पर लगा देना चाहिए। उपचार्का को सावधान रहना चाहिए कि एंसा कुछ न हो जो रोगी के मन में नकारात्मक संवेग पैदा करे (जैसे रक्‍्तरंजित रुई के फाहे या गाज, या यहाँ तक कि शग-सी भी गंदगी) । चिकित्सा शीलाचार के अंतर्गत व्यवहार के वैज्ञानिक सिद्धांत केवल नचिफित्सक के ही लिए नहीं, बल्कि चिकित्सा सहायकों के लिए भी होते हैं। इन सिं दांतों में 16




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