आविष्कार-विज्ञान | Avishkar-Vigyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
172
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहला अध्याय
अन्तजगत्
जगत् दो दै-८१) बहिजगत् ओर (२) अरन्तजगत् ।
वहिजगत वह है जिसका अनुभव हम इन्द्रियों द्वारा करते हैं;
ओर अन्तजगन् वह है जिसका अनुभव हमें केवल मन द्वारा
ही होता है अथात् अन्तजगत् इन्द्रियातीत है ।
इन दोनों जगत म बड़ा सारस्य ओर धनिष्ठ सम्बन्ध है ।
यह सहशता इतनी बढ़ गई है कि कई विद्वानों को एक का
বুপই ম সন हुआ है । कई अंशों में समानता रखते हुए भी
थ एक दूसरे से भिन्न हैं | अन्तजंगत् मनोमय है ओर बहिजेगत्
भौतिक । जसे इनके उपादान एक नहीं वेसे-ही इनके नियमों मे
भी भेद है। इसी कारण दोनों प्रथक २ माने गये हैं; और दोनों
की सीमा इतनी निर्धारित है कि एक का दूसरे से पार्थक्य बिल -
कुल स्पष्ट प्रतीत होता है ।
यह कहा जा चुका है कि इन दोनों जगतों में बड़ी सह-
शता है | इसी कारण एक को समझ लेने से दूसरा भी समझ में
आजाता है | हम सब ने इस बहिजंगत् को देखा है । इसके
उपादान कारण को प्रकृति ओर रचयिता को पुरुष कहते हैं ।
परमात्मा ने प्रकृति द्वारा इस विद्व की रचना की है । न केवर
प्रकृति से द्वी यह विशारू विश्व बन सकता है, ओर न कवर
परमात्मा ही बिना प्रकृति के इसे रच सकता है । पहले में
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