जीवन की आवश्यकतायें | Jeevan Ki Avashyktayen

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Jeevan Ki Avashyktayen by पंडित ठाकुर दत्त शर्मा - Pandit Thakur Dutt Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १५ ) समय खराब ह रहा है। इसको प्रति समय साफ करने की आवश्यकता है। यदि मलुष्य का श्वास बन्द कर दिया जाये, तो उसका सम्पूरी रक्त खराब होकर तुरन्त मर जाता है | यही कारण हे, कि सदैव साफ खुली वायु में श्वास लेना चाहिए। अशुद्ध वायु रक्त को भली भांति साफ नहीं करती, इस वास्ते मनुष्य निबेल हो जाता है, रोगी हो जाता है। श्वास गहरा लेना चाहिय, जिससे भली भांति घायु फुप्फुसद्यय मं भर जावे, और क्ष्ण रक्त को अच्छी तरह साफ कर सके । श्वास को निकालना भी भली भांति चाहिए, ताकि दूषित परमाणु जो वायु भे सम्मिलित हुए हैं, वह पूणतयः निकल जावे | हिन्दुओं मे देनिक बाहिर जाकर जो प्राणायाम की विधि प्रचलित थी, और अव भी घामिक लोगों में हे, उसका उर्देश्य मन की एकाग्रता के अतिरिक्त रक्त शोधन भी है। व्यायाम से भी यह उद्देश्य पूरा होजाता है, पट्टां के हिलने से उनकी दृढ़ता के अतिरिक्त श्वास शीघ्र २ और खूब भर कर भीतर जाता है रक्त को शुद्ध करता हे, रक्त परिभ्रमण भी बढ़ जाता है, ओर श्रव शरीर मे जहां कहीं मी कोड दूषित परमाणु ररक गया हो, वह जोर के बहाव में बह जाता हें, स्वेद आने से उसके द्वारा भी कई विष निकल जाते हैं। व्यायाम भी खुली वायु में करना चाहिए | अशुद्ध वायु अधिक मात्रा मं भीतर आकर लाभ के बदले हानि पहुचा सकती हे | इंध्वर की विचित्र शक्ति है। शरोर में रक्त लाल हो जाता है, आर कृष्ण लौट आता हे, परन्तु फुप्फुसुठय में कृष्ण जाता है, और लाल लौट आता हे | फुप्फुस को थेड़ा समझ लेना चाहिए, क्योंकि हम यहां कोई घात सविस्तर नहीं लिखगे केवल श्रावश्यक बति समभा रह र ।




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