संगीत का लहराता सागर | Sangit Ka Lehrata Sager

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Sangit Ka Lehrata Sager by दर्शन सिंह - Darshan Singhहीरालाल -Heeralal

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दर्शन सिंह - Darshan Singh

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हीरालाल जैन - Heeralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8 संगीत का लहराता सागर महाराज प्रसन्न हुए। उन्होंने विष्णु को बुलवाया। विष्पु आया और उसने प्रणाम किया। महाराजा ने प्रेमपूर्वक कहा- विष्णु ! मैने तुम्हारी संगीत शिक्षा का प्रबंध कर दिया है। अगले सप्ताह “गंडा” बंधवाने के पश्चात तुम्हारी शिक्षा आरम्भ हो जायेगी। मैंने बुवा साहब को कह दिया है। वे तुम्हें अपने घराने की ख़ास तालीम देंगे। तुम्हें गुरु आज्ञा का पालन करना होगा। बहुत मेहनत करनी होगी। एक दिन तुम बहुत बड़े गायक बनोगे। इसका मुझे विश्वास है।” “ठीक है महाराज। मुझे तो बचपन से ही गाने का शौक है। मैं आपकी आज्ञा का पालन करूंगा। मैं भाग्यशाली हूँ कि मुझे आपके दरबारी गायक, बुधा ताहब जैसे प्रसिद्ध गायक से तालीम मिलेगी। मैं हृदय से इस कला को स्वीकार करता हूँ और वचन देता हूँ कि अपना जीवन इस कला के लिए अर्पित कर दूंगा” विष्णु ने साहसपूर्वक कहा। महाराजा मिराज आश्वस्त हए । उन्होने 7.8.1887 के दिन भरी सभा में विष्णु को, श्री बाल कृष्ण बुवा से “गंडा” बंधवा दिया। इस अवसर पर विष्णु की ओर से उन्होंने एक पगड़ी, शाल्र, बादाम, मिश्री और एक सौ एक रुपए, बुवा साहब को भेंट किए। इस प्रकार विष्णु की संगीत शिक्षा विधिवत रूप से बुवा साहब के आश्रय में होने लगी। वे अपने गुरुदेव के पास सारा दिन रहते। सेवा करते। संगीत सीखते और रियाजु करते। उस काल में संगीत को सीखना बड़ा कठिन कार्य था। वह भी एक ऐसे विद्यार्थी को जिसकी आँखों की रोशनी कम हो। विष्णु को यह सुविधा इसलिये मित्त गई क्योंकि उन्हें राजाश्रय प्राप्त था। उस काल के “गुरु” संगीत की शिक्षा केवल अपने विश्वासपात्रों अथवा नजदीकी रिश्तेदारों को ही देते थे। उस समय गुरु-शिष्य प्रणाली प्रचलित थी। इस प्रणाली में 'शिष्य” गुरु के पास रहकर सीखते थे। विद्यार्थी का ज्यादा से ज्यादा समय “गरुजनों' की सेवा में बीतता था।




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