भौतिक विज्ञानं | Bhautik Vigyan
श्रेणी : गणित / Maths
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
119
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)के টি জি ५ [ल ৬/
चित्र 11.6 : ऊष्मा इंजन
और जिससे ऊष्मा © प्रत्येक चक्र में ली जाती है, ऊष्मा
का बहुत बड़ा भंडार है, अतः ऊष्मा लेने से उसके ताप में
उल्लेखनीय अंतर नहीं पडता । दसी प्रकारनिकास को
भी हम विशाल आकार का मानते हैं ।
इंजन की क्रिया चक्तीय क्रिया होती है । ऊष्मागतिकी
में इसका आशय थह है कि कार्यकारी निकाय किसी प्रारं-
पक अवस्था से चलकर कुछ प्रक्रियाओं से गुजरते हुए
भौतिक विज्ञान
वापिस उसी अबस्था को बार-बार आता रहे। इसका
আহাদ অন नहीं है कि निकाय उसी पथ पर लौटे जिस पथ
से वह बढा था, वास्तव में सूचक आरेख पर निकाय का
पथ एक संवृत्त वक्र होता है, रेखा नहीं । प्रत्येक चक्र की
समाप्ति पर निकाय के समस्त गुण आरंभ के समान हो
जाते है । इंजन द्वारा कृत कार्य के विवेचन में यह उचित
और पर्याप्त होता है कि एक चक्र के विभिन्न भागों में
प्राप्त या दत्त ऊष्मा ओौर प्राप्तया कृत कायं पर विचार
करे |
ऊष्मा इजन को श्रेष्ठ तब माना जाता है जब स्रोत
से प्रत्येक चन्र में प्राप्त ऊष्मा 0, के अधिकतम भाग को
वह् कायं ५७ में परिणत कर सके | अनुपात ७/०0, को
इंजन की दक्षता कहते है ।
कार्य उत्पादन (५)
ऊष्मा निवेश (0) ...(11.5)
यदि प्राप्त ऊष्मा 0, में से इंजन द्वारा ऊष्मा 0,
निकास (সিদ্ধ) में फेक दी जाती है, तो यह मानते हुए
कि इजन के पुर्जे आदर्श है (घर्षण रहित) और अन्य
कही ऊर्जा का आदान-प्रदान नहीं हो रहा है, हम ऊष्मा-
गतिकी के प्रथम नियम से लिख सकते हैं कि
||| ==-1--
क्योंकि प्रत्येक चक्र के बाद कार्यकारी पदार्थ प्रारंभिक
अवस्था मे आ जाता है, इसलिए आंतरिक ऊर्जा में कोई
परिवर्तन नहीं होगा, यह बात उक्त समीकरण मे निहित
हुँ । अब समीकरण (11.5) से
दक्षता (9) =
९-७, _1-. 35
1 ৪৮ 0, ...(11.6)
इस प्रकार दक्षता का मान इकाई से सदा कम होगा।
यदि ॥८-1 होना है तो 0५७० होना चाहिए । ऐसा क्यों
नहीं हो सकता--आदर्श इंजन में भी--इस बात का
ऊष्मागतिकी के द्वितीय नियम से सीधा संबंध है ।
11.8 ऊष्मागतिकी का दूसरा नियस (8७
00710 [থয 01 [0)017100117277809)
हमारा अनुभव है कि यदि पानी के बर्तन में, डूबी
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