नीलमदेशकी राजकन्या और अन्य कहानियाँ | Nilamdeshki Rajkanya Aur Anya Kahaniyan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
237
श्रेणी :
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No Information available about जैनेन्द्र कुमार - Jainendra Kumar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१० दष्ट्रि-दोष
1 ११
° सुभद्रा
८“ ,..नहीं, नहीं, में विधवा जल्दी हेनिवाली नहीं हूँ। में कभी विधवा
नहीं हो सकती, क्योंकि में सती होऊँगी | सतीत्व भारतंस मिटा नहीं है, यह
मुझसे लोग देखेंगे | तुम आशा करके अपनेको ठगो मत, केदार । क्योंकि में
विधवा एक क्षणको भी नहीं हूँगी ओर तुम्हारा मुँह भी नहीं देखूँगी। दृष्टि-
दोष न होता तो क्या तुम समझते हो भें याद भी करती कि केदार नामका
कोई डाक्टर है या केदार कोई आदमी भी है! आँखकी वजहसे ही में तुम्होर पास
आई हूँ, यह खूब समझ लो । ”'
मेंने जेबसे नोट निकाले | धीमे धीमे हाथ बढ़ाकर उसका हाथ पकड़ा ओर
उस हाथकी मुह्ठी बाँध उन नोटोंको मौज देकर उसकी कलाईको थाम हुए ही
कहा, “ सुभद्रा !
कुछ देर वह जैसे अवसन्न हो रही | फिर एक साथ झटकेसे अपना हाथ
खींचकर बोली--आप मुझे यह बताना चाहते हैं कि मे मजा नीद ओर
आपके पास इसीलिए नहीं आई हूँ कि आप डाक्टर हैं ? अजी, मुझे दृष्टि-दोष
न होता ओर आप आँखके डाक्टर न होते तो मेरा आपसे क्या वास्ता था ? यह
रुपये वापिस करके आप अपनेको धोखा देना चाहते हैं कि मेरा आपसे वास्ता है!
यह कह कर दोनों नोट मेजपर ही छोड़ दिये | वे कागज गुड़ी-मुड्ी हुए
मेजपर पडे रहे ।
भने कहा-- सुभद्रा !
सुभद्रा खड़ी हो गहं । उसने कदहा- अच्छा डाक्टर साहब; मेरी अंखोको
आराम हो जायगा न ? आपने आठ रोजकी दवा दी है। उसके बाद खत
भेजकर या आदमी भेज कर भी आपके यहाँसे दवाई मेंगाई जा सकती है न ?
मेरा आना मुश्किल होगा ।
में भी खड़ा था। भेने कहा--प्यारी सुभ--
लेकिन सुभद्रा दरवाजेसे बाहर चली गई थी। **,
+ + + +
इसको बीते ज्यादे दिन नहीं हुए हैं ओर में नहीं जानता कि इस. श्रटनाको
में किस प्रकार तह करूँ ओर अपने सामानमें उसे कहाँ रखूँ।
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