चिड़ियाघर | Chidiyaghar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चहचहाता चिड़ियाघर १९१ धरम के कारन धरमदत्त नें देखो जान गेंवाई, धरम्‌ के काररणं জী # # ॐ ॐ ॐ @ ডি গে ডগি ভগ 96 উকি धरम-घरम को धूम मचाओझ्रो, घरम-धुजा फहराओ, धरम श्रोदलो, धरम बिछालो, धरमी सब बन जाश्रो, घरम के काररणं जी, धरम कं कारं जो- धरम फे कारणं जी; भाईयो, तन-मन-घन सब दे दो 1 कवि कारण्डवजी अभी अपनी भूरि भाव-भरित कविता की दो-तीन कड़ियाँ ही पढ़ने पाए थे कि लोग सरसे साफ़ा बाँध, मोटा सोटा ले और गले में गुलूबन्द लपेट कर घर्म पर बलिदान होने को आा खड़े हुए ! 'जीवन-दान', “जीवन-दानः की आवाज़ें आने लगीं, 'धन्य-धन्य” की धूम मच गई ! सभा- पतिजी ने भी, कारण्डवजी की चोंच चूमकर स्पष्न दब्दों में कहा-- भाई, बस, इस आधुनिक युग में आप ही एक काम- याब कवि हैं ! विराजिये, इस समय शीघ्रता है। आपकी 'पद- पाढ़न्त के लिये तो पूरे पाँच घंटे दिये जाये, तब कहीं श्रोतृ- सम्लुदाय की संतृप्ति हो। ओ हो (--भ्राप की कविता क्‍या है, 'फ़ायर-ब्रिग्रेंड! का इज्जन या तुफ़ान-ट्र न का भोंपू है। धर्म, जिस पर जगत्‌ स्थिर है, उसके आप जेसे परम प्रवीण प्रचारक धस्य है! कृवि कारण्डवजी को कुकड़ं-कं” समाप्त होते ही, घटना- घन घमण्ड घोघा घुग्घु घासलेटानन्दजी अपनी श्रकड़ में घोर घोषणा करते हुए, उसी प्रकार बिना बुलाए पञच बन मञ्च पर आ आरूढ़ हुए जिस प्रकार 'साइमन-सप्तक' भारत के भाल प्र आ धमका था ! सभापति श्रीगरूडदेवजी ने गुस्से से गुरति हुए कहा-- अच्छा, पढ़िये, पहले आप ही पढ़िये।” तब श्री घासलेटानन्दजी ने अश्रगाई-पिछाई तोड़, और कुण्डे-कुण्डी फोड़




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