अन्तर्राष्ट्रीय लोकयानी अनुसंधाता | Antarashtriy Lokayaani Anusandhata

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Antarashtriy Lokayaani Anusandhata by जगदीश चतुर्वेदी - Jagadish Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रचार एवय प्रपार का भी अत्यन्त ही लोकप्रिय ढंग अपनाया । भाई बाला तथा मर्दाना जो उनके साथ सदैव ही रहे उनकी वाणी को भत्यन्त ही रोचक ढंग से लोक-संगीत की स्वर लहरियों में श्रावद्ध करते थे तथा लोक में प्रचलित विभिन्‍न साजों पर उनकी वाणी को जन-जन के हृदय में पैठने देने का अवसर देते ये । लोक का हृदय नानक की सुग्रम लोक-वाणी को सुन गदुगदू हो जाता था और लोक उसे अपना ही स्वर एवम्‌ भावना सावकर यदाकदा गुनगुना लिया करता था। कौन कह सकता है कि नानक को कमनीय लोकभावना का प्रतिपादव एवम्‌ उनके स्वरो कौ सरल-तरल मल्दाकिती का रसाहवादन करते हुये लोक-मानस अपनी सुधि-बुधि नहीं खो बैठता होगा। नानक ने अपने जीवन मे विभिन्न यात्रा्ये की लोकभाव- नाओं का गहन एवम प्रान्तरिक अध्ययन किया और सदव ही उसने पाया कि लोक-मानस उसकी भावनाओं मे अपना स्वर मिला आलापने को उहिग्न है । नानक मक्का गये जहाँ बड़े-बड़े मुल्लाओं से भेट हुई, उनके साथ 'पिद्ध- गोष्टि' हुई और नानक ने उन्हें भी अपने ही रंग में रंग लिया, जिधर भी नानक गये उधर ही लोक-भावना की चर्चा उन्होंने की श्रौर वे एक स्वर से जन-जन के अन्तस्‌ के गायक.नायक बन बहुचरचित एवम्‌ लोर के परम श्रद्धास्पद बने। नानक कौ भांति कबीर नेथी सोक-भषामे एवम्‌ लोक-दली मेँ ग्रपनी काव्य-रचना की जिसके परिणाम स्वरूप कबीर भी लोक~कवि बन तत्कालीन लोक पर छा गये। आज भी होली के अवसर पर कबीर! का रंग श्रपती निराली ही छूटा बिखेरता है। रात्रि के ठण्डे प्रहर में जब कबीर के पदों की रागिनी अपनी भेरवी प्रालांपती है तो लोक का न्तस उतंलसित हो भूम उव्तादै | लोक की बात को भत्यंत ही सादे ढंग से कहकर उसमें रहस्यमयी चमत्कारिकता का दिग्दशन करा देना कबोर जेसे ही महा- पुष का कायं था। क्वीर कौ उलटकासियां भ्राज भी ` जन-जन की जिह्वा १५




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