सप्तगिरि | Saptgiri
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
45
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उत्तर भारतम शुग भौर कण्व वक्षो की
अवनति हुईं तो हिमाचल से कर्णाटक तक विस्तृत
भसगध साम्राज्य छिन्नभिन्न हुआ । उसके ब्राह्मण
सरदार पूर्वीध द्वीप प्राय -द्वीपो में व्यापारियों
और कुशल कलाकारों को साथ ले चले और
उपनिवेश स्थापित करके राजकाज करने लगे ।
ब्रह्मदेश, काबोज, चपा, श्रीविजय, मलय एवं
यवद्वीप के मयापहुत (मजापहुत) आदि के हिन्दू
राज्यों ने ईसा की पहली शताब्दी से लगातार
न्द्र्ह्वीं शताब्दी तक उन देशो मे वेष्णवभक्ति
पर आधारित वर्णाश्रम धमं की व्यवस्था करके
सुखशान्तिमय तथा संघर्ष रहित रामराज्य
को स्थापित किया ।
चपा के एक शिलालेख से पता चलता है कि
कीडिन्य नामक एक ब्राह्मण वीर ने वहाँ के तांग-
राज को पुत्री से व्याह करके द्रोणपुत्र अश्वत्याम
प्रदत्त भाले को बोकर चपा राज्य की स्थापना
की । रत्मेर यानी काबोज के ऐतिह्य के अनुसार
कबुअधि और उस देह की अप्मरा मेर के बशजो
ने काबोज या रुसेर राज्य की स्थापता की ।
ईसी की पहली হাজী से पर्हुवी शत्ती तक
उन देशों के सभी राजाओ के नाम वर्मा दाब्द से
अत होते थे । पॉचवी शती की लिपि पूर्ण तथ।
पल्लेच 'लपि थी । सन् ४८४ ईहवी भे काबोज
के राजा कोण्डि्प जयवर्भा ने चीन में बौद्धधर्म
के प्रचार करने नागसेन नामक कक्ष को भेजा
था। सन् ६५० ई० भे अग को (अग प्रभु)
नगर काबोज की राजधानी हुआ । জন্ ४०२
ईसवी में अग को राजयंश के राजा जयवर्मा से
हरिहरालय (प्राखन) अमरेद्धपुर (बन्ते ई छमर
और महेन्द्रपवंत बसाये गये। वहे प्रासादो
मन्दिरों और पुलो की भित्तियों मं विविध दंदिकं
एवं पौराणिक देव - देवियों के विश्वह्र स्थापित
हुए ओर लेपसिन्न अकित स्थि गयं । जयवर्भा
हितीय का समय काबोज का स्वर्णयग कहलाता
है। उसकी सहायता से वहाँ सगीत साहित्य
और विविध कलाओ की महान प्रगति हुई ।
राजा इच्धवर्मा के समय से अमरावती के शिल्प
की जगह पिरसिड या गोपुर शिल्प अपनाया
जाने लगा । दसवी और ग्यारहवी श्तियों में
ऋमश: राजा यश्ोवर्मा से बेधान नामक बहत्
शिवालय और राजा जयवर्मा से अगकोबेंट
नामक विष्णुमन्दिर इस नूतन शली से बनाये
फरवरी 79
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गये! अगकोवंट का प्राकार लगभग एक किलोमीटर ही बब॑रो का अधिकार ओर असह्यमय बन्धन
মা है। उसमें रामायण, महाभारत हरिवंश
तथा छृष्णावतार से सम्बन्धित सहस्रो चित्र
अकित हे ।
सन् ११४० ईसबी मे अभिषिक्षत यशोवर्मा
हितीय विरक््त बोड्धसन्यासी बनकर कहीं चला
गया तो काबोज मे जनायकता फली } चतिभृवन-
दित्य नामकं सरदार ने अनायकता का अत
करते तीस वषो तक राजकाज सभालने का
प्रयत्न किया किन्तु आपसी फूट तथा चपाराज्य
के समुद्री आक्रमण के परिणाम से त्रिभुवता-
दित्य मारा गया इसी सदभं मे राजमाता मम
शिवका (1211851802 } अपने बच्चों और
हितंषियो के साय लेकर नाव यं बंठकर दक्षिण
अमेरिका के पश्चिमी तट में तमोवाशन (18-
1100080) नामकं जगह पर उतरी । राजमाता
आँसू बहाते गदगद कठ में राजकुमार से कहने
लगी । हे वत्स, रोकका जब॒तक हमारे पूर्वज
अपने परमपिता सुयंदेव एव वरपुख की स्वाभा-
विक उपास्नाभो ओर सैनिक अभ्यासो मे निष्ठ
पुवेक व्वस्त थे, तद तक प्रजाघुखी थी ओर
राजा वशपारपर्य से हमेशा शत्रुओ पर दैभदपुयं
विजय प्राप्त कर सके थे । उनके छोड देने से
আসা আয যগাত यवर : घट ::५:
तिरुमल पर श्री व
|
लाजी का चक्रसान
सहने पडे! हमने तुमको राजा बनाते का
निदचय किया है। हमारा विध्वास है कि तुम
अपनी सामथ्य तथा वरयुल (४1120008) पर
रखे भरोसे से इस तगर एवं राज्य को पहले ही
जसे वभवपुर्ण बताओगे । इसके वशज आये
मानसतप (७५७ (०७100 1078 ) आर्य दशक्ति
त (^ (थत 1098) आये उच्चतप
(8५07 0०००४ 10798) और आये आयष्यतप
(4988 আও 70.8) के प्रयत्तों से गौत-
डा० एस, वेणुगोपालाचाय,
मण्ड्या
मालय (07&८7०४) मधिको (मधस्वामी)
(४९४००) यशस्थान (४४८४७॥) और अग-
देश पर्वत (87065) के चारो ओर व्याप्त सूर्य
देश परू (प्रभु) (?८०) से वेषणव भक्ति पर
आधारित वर्णाश्रमधम सर्वदेवनमस्कार केशव
प्रतिगच्छति ' की घारणावाली उपासना प्रणा-
लियो सहकारी तथा पारिश्रसिक जीवन-पापन
करने वाले प्रजाभो पे यस्त राभराज्य स्थापित
हए । ये सोलह्वौ शती से स्पेन के आक्रामक
स्वार्थों उपनिवेज्ञकों से उजाड़े जाने लगे ।
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