गुजराती साहित्य का इतिहास | Gujaraatii Saahity Kaa Itihaas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गुजरात भ्रौर गुजराती ¶ भारतीय प्रायं भाषाभ्रौं की है। सभी विद्वान साहित्य की प्रादि भाषा देववाणी संस्कृत को ही मानते हैं। बहुत काल तक साहित्य की भाषा तो संस्कृत ही रही किन्तु जनता की बोली बदलती रही । इस जनता की बोली का नाम पड़ा--प्राकृत । इसी प्राकृत भाषा का एक रूप था शौरसेनी प्राकृत श्लौर इसी शौरसेनी प्राकुंत भाषा से नागर प्रपश्न श का विकास हुआ । भ्राधुनिक मुजराती इसी नागर प्रपश्न श से विकसित हुई जान पड़ती है । ११वीं शताब्दी से १४वीं शताब्दी तक की भाषा को विद्वानों ने गौर्जर अपभ्रश नाम दिया है तथा १५वीं से १७वीं शताब्दी तक की भाषा को प्राचीन गुजराती कहा है श्रौर इसके बाद भ्रर्वाचीन गुजराती भाषा का विकास हुआझा है । संस्कृत-व्याकरण के भ्राधार पर गुजराती भाषा को व्यवस्थित बनाया गया है । संस्कृत, प्राकृत के श्रलावा श्ररबी, फारसी, अंग्रेजी, पोचंगीज तथा फ्रेंच भाषा के शब्द भी गुजराती में आए हैं ।




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