आलोचना | Aalochanaa

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Aalochanaa by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नाट्य-शास्त्र की भारतीय परम्परा ?? आधुनिक परिडतों को भी इस विषय में कोई सन्देह नहीं है कि 'ऋग्वेद' में अनेक स्थल हैं जो निर्विवाद रूप से संवाद या 'डायलॉग' हैँ। कम-से-कम पन्द्रह ऐसे स्थल तो खोजे ही जा सकते हैं जिनमें स्पष्ट रूप से संवाद या संवाद का आमास मिल जाता है | “ऋग्वेद! १०१० में यम और यमी का प्रसिद्ध संवाद है तथा १०६५ में पुरूरवा श्रोर उबशी की बातचीत है। ८ वें मए्डल के १००वें सूक्त में नेम भार्गव ने इन्द्र से प्राथना की और इन्द्र ने उसका उत्तर दिया । कह्दी-कहीं तीन व्यक्तियों के भी संवाद मिलते हैं। प्रथम मण्डल के १७६वें सूक्तम इन्द्र, अदिति और वामदेव का संवाद द्दे। १० वें मएडल के १०प८वें यूक्त में इन्द्र-दूती सरमा अपने सारमेय पुत्रों के लिए. पणियों के पास जाती है और उनसे जमकर बात करती है | कुछ ऐतिहासिक-जेसे लगने वाले संबाद भी हैं । विश्वामित्र की नदियों से बातचीत तीसरे मण्डल के ইইন यूक्त में पाई जाती है ओर वशिष्ठ की श्रपने पुत्रो के साथ बातचीत सातवें मण्डल के २३वें सूक्त में सुरक्षित है। ऐसे ही और भी बहुत-से सूक्त है जिनमें देवताओं की बातचीत हैं। यद्यपि कभी-कभी आधुनिक परिडत इन सूक्तों के अथ के सम्बन्ध में एक- मत नहीं हो पाते। एक परिडत जिसे संवाद समभता है, दूसरा पणश्डित उसे संबाद मानने को प्रस्तुत बहीं | इस प्रकार का झगड़ा कोई नया नहीं है। दशम मण्डल के ६५वें सूक्त को, जिसमें पुरूरवा ओर उबंशी का संवाद है, यास्क संवाद दी मानते थे; परन्तु शौनक उसे कहानी-मात्र मानते थे | वेदों में ये संवाद क्‍यों आए १ सन्‌ १८६६ में सुप्रसिद्ध पण्डित मेकक्‍्समूलर ने प्रथम मणडल के १६५वे सूक्त के सम्बन्ध में , जिसमें इन्द्र ओर मझ्तों की बातचीत है, अनुमान किया था कि यज्ञ में यह संवाद अभिनीत किया जाता था। सम्मवतः दो दल होते थे, एक इन्द्र का प्रति- निधि होता था, दूसरा मरुतों का । १८६० ई० में प्रो० लेवी ने भी इस बात का समथन किया था | प्रो० लेवी ने यह भी बताया था कि बेदिक काल में गाने की प्रथा काफी प्रीढ़ हो चुकी थी। इतना ही नहीं “ऋग्वेद! १।६२।४ में ऐसी स्त्रियों का उल्लेख है जो उत्तम वस्त पहनकर नाचती थीं श्र प्रेमियों को श्राकृष्ट करती थीं। 'अथववबेद” में (७।१,४१) पुरुषों के भी नाचने और गाने का उल्लेख है। श्री ए० बी० कीथ ने काय-कारण-सम्बन्ध को देखते हुए इस बात में कोई कठिन आपत्ति उपस्थित होने की सम्भावना नहीं देखी कि ऋग्वेद-काल में लोग ऐसे नाटकीय दृश्यों को जानते थे जो धार्मिक हुआ करते थे ओर जिनमें ऋत्विक्‌ लोग स्वर्गीय घटनाओं का प्रृथ्वी पर अनुकरण करने के लिए देवताओं और मुनियों की भूमिका ग्रहण करते ये| नाटक में जो अंश पाठ्य द्वोता है वह पात्रों का संवाद ही है। 'नाट्य-शास्त्र! के रच- यिता ने जब यह संकेत किया था कि ब्रह्मा ने 'नादय ०द? की रचना के समय 'पाठय-अ्रंश' ऋग्वेद! से लिया था तो उनका तात्पय यही रहा होगा कि ऋग्वेद में पाए जाने वाले काव्या- व्मक संवाद वस्तुतः नायक के अंश ही हैं। ऐसा निष्कर्ष उन दिनों यज्ञादियों में प्रचलित नारकीय दृश्यों को देखकर ह्दी निकाला जा सकता है। श्राधुनिक काल के कई विद्वानों ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि ऋग्वेदकालीन यज्ञों में वस्तुतः कुछ अभिनय हुआ करता था। सारे संसार की प्राचीन जातियों में नाच-गान और श्रभिनय का अ्रस्तित्व पाया जाता है। प्रो० फान भ्रढेर ने बताया था कि ऋयखेद! में श्राएं हुए संबाद प्राचोनत र भारो-




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