अष्टछाप | Asht Chhap

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Asht Chhap by धीरेन्द्र वर्मा - Dheerendra Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अथ सूरदास जी गऊघाट ऊपर रहते तिनकी वार्ता ३ महाभ्रभून ने कदी जा सूर कक भगवद्‌ जस वणन कशे । तब सूरदास जी ने की जे अज्ञा । से सूरदास जी ने श्री आचाय॑ जी महाप्रभून के आगे एक पद गायो ॥ से पद्‌ ॥ राग धनाश्री हा हरि सब पतितन को नायक । के करि सके बराबर मेरी इतने मान को लायक ॥१॥ जा तुम अजामेलि सें कीनी जा पाती लिख पाङ । होय विश्वासः मलो जिय शरपने शरोर? पतित बुलाङ ॥ २॥ सिमिटे* जहाँ तहाँते सब काऊ आयज़ुरे इक ठोर। अब के इतने झ्ान मिलाऊ बेर दूसरी ओर॥३॥ हाडाहोडी मन हुलास करि करे पाप भरि पेट। सबहिन ले पायन तरिपरि हौ यदी हमारी भेद ॥ ७ ॥ पेसी कितनी कब नाऊ 'प्रानपति खुमरन है भयो आडो । ्रवकी वेर निषार लेड प्रभू सुर पतित कैं खड़॥५॥ ओर पद्‌ गायो । राग धनाञी प्रभु में सब पतितन क टीको । ओर पतित सब द्योस चारिके में तो जन्मत ही का ॥ १॥ बधिक ध्जञामिलि गनिका त्यारी और पूतना द्वी के । मेहि ङाडि तम श्चोर उधार मिश्रे शूत्र केसें जीफा ॥ २॥ १ अआज्चा । २ विस्वास । ३ झोरहु। ४ शिमिट । ५ कितनोक अनाठः ।




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