चिद्विलास | Chidilas

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Chidilas by श्री सम्पूर्णानन्द - Shree Sampurnanada

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ नरी है | समाधिम ही साक्षात्कार होता है । जो इस मार्गपर जितना ही जागे बढता है उसको उतना ही विशद, ভিহান্তুঃ शान होता है। समाधि- के एक क्षणकी तुलनामे पठन-पाठन ओर मननका सहख वर्ष भी नहीं ठहरता । शर्कराके सम्बन्धमे एक पुस्तकाल्यभर ग्रन्थ लिखे और पढ़े जा सकते है, परन्तु उसका स्वाद वही जानता है जिखकी जिह्वापर कभी एक बताशा पड़ा है । श्रोजियताकी कमीसे वह दूसरोतक अपने ज्ञानका कोई भी अंश चाहे न पहुँचा सके, परन्तु वह स्वयं उस आनन्दका अनुभव करता है जो ज्ञानका नित्य आनुपद्धिक है। सच तो यह है कि कोई भी अनुभव दूसरेतक यथाथरूपमे नही पर्हुचाया जा सकता | मेरे जेसे अव्पज्ञ जिस वातको कहनेसे बिगाड़ देंगे उसीकों जो बहुश्र॒त मेधावी होगा बह सुबोध बना देगा, परन्तु जो तत्व अवाझनसगोचर टै उसको स्वय भारती भी शब्दबद्ध नही कर सकती । भारतकी बाहरके विद्वानोने दर्शनका योगसे कोइ सम्बन्ध नहीं माना है। यदि दर्शन कोश बुद्धिविलासका विपय होता तो यह विभाजन ठीक हो सकता था। दार्शनिक मत था तो साक्षात्कारका परिणाम है या कव्पनामात्र है। जगत्‌के स्वरूपको समझनेके प्रयलमें कई ऐसी ग्रन्थियों मिलती है जिनको तर्क नही खोल सकता | वह या तो प्रत्यक्ष अनुभवसे खुलती है या ब्रैंघी ही रह जाती है| मुझे वारम्बार योगकी प्रयासा ओर कोरे पाण्डित्यकी निन्दा करते देखकर यह प्रश्न मुझसे पूछा जा सकता है कि क्या तुस स्वयं योगी হী १ में इस सम्बन्धसे इतना ही निवेदन करूँगा कि सदगुरुकी कृपाने सुझमे योगकै प्रति अखीम श्रद्धा उत्पन्न कर दी है। मेने योग और ज्ञानके सम्बन्धम जो कुछ लिखा है वह सबका सब मेरे अनुभवका परिणाम हो या न हो, किन्तु मेरे दृढ़ विश्वासका व्यज्ञक निःसन्देह है | इतना ही और कहना चाहता हूं कि आजकल जो यह विश्वास पेल गया है कि हम एतत्कालीन मनुष्य योगाभ्यास करनेके योग्य नहों है, इसके लिए कोई आधार नही है | आजका मनुष्य भी योग कर सकता है; योगका स्थान कोई दूसरी उपासना-शेली नहीं ले सकती |




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