संस्कृति - मानव कर्त्तृत्व की व्याख्या | Sanakriti Manav Karttritva Ke Vaykha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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সঈহা [ ७ सबसे बडी बात यह है कि समाज-वंज्ञानिक इस स्वाधोनता का कोर श्रथ नहो समभता, इसलिये उसकी सारणी इस पूर्व धारणा पर प्रतिष्ठित है कि मनुष्य एक इच्छा-बद्ध प्राणी है। इसलिये बह भविष्योक्ति में अपनी असफलता का कारण केवल अपने परीक्षण-विषय की जटिलता को मानता है। जैसाकि हमने पिछले प्रनुच्छेद मे देखा, यह कठिनाई भी कम बडी नहो है, श्रौर वास्तव मे यह इतनी बडी है कि वैज्ञानिक के कार्य को असभव बना देती है, किन्तु तब भी इससे संद्धान्तिकं रूप से ममाजवंज्ञानिक का काय श्रुक्त नही होता । भूल्य की विद्यमानता उसके कार्यं को सिद्धान्तत ग्रमभव वना देती है। इसलिये, हमारे विचार मे, समाजनास्त्र विज्ञान के रूप मे श्रसभव है। समाजशास्त्र के लिये उचित विधि ऐतिहासिक-दा्शनिक विधि है । यह विधि समाज को एक सास्कृतिक व्यवस्था के रूप मे देखेगी, जिसका भ्रधिष्ठान क्रिया-प्रतिक्रियात्मक शरीर-समुदाय नही होकर मूत्य श्रौर प्रादनं मे है, जो मून्यादं रेतिहामिक सन्दर्भ मे भ्रपने श्रयं का विकास करता है। किन्तु हमने यहा सस्करत पर एतिहासिक रुदरभं मे विचार नही किया है, क्योकि वह्‌ विशेष समाजो का श्रष्ययन ही हौ सकता है, भ्रथवा सोरोकिनि श्रौर टायनबी के समान विशाल चित्रपट पर हो सकता है । हमने यहा उन भर्थो के स्वरूप पर विचार किया है जिनमे मृल्यादं रचित होते है 1 उदाहर- शत सोरोकिन जिसे सेंसेट कल्चर कहते है उसके मूल्यादर्श का क्या रूप है, यह हमने ''प्राकृतिक विज्ञान” भ्रध्याय मे देखा है भ्लौर जिसे श्राइडियेइनल कल्वर कहते है उसके अर्थ-झरप को “धर्म” अध्याय मे । हमारे श्रन्य अ्रष्याय सोरोकिन के भ्रन्य भर्थ-रूपो से सम्बन्धित नही किये जा सकते, किन्तु प्राकृतिक विज्ञान मे हमने गरित के सम्बन्ध मे जो कहा है वह उनके “बौद्धिक सत्य”” से मेल खाता है । भाषा और नीति प्रत्येक सस्कृति के आधारभूत श्रर्थ-रूप हैं और पौराणिकता एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक सास्क्ृतिक वस्नुस्थिति । इसलिये इनपर भी विचार किया गया हैं ।




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