स्याद्वादानुभव रत्नाकर | Syadwadanubhav Ratnakar

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Syadwadanubhav Ratnakar by खेमराज श्री कृष्णदास - Khemraj Shri Krishnadas

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about खेमराज श्री कृष्णदास - Khemraj Shri Krishnadas

Add Infomation AboutKhemraj Shri Krishnadas

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
श्रीवीतरागायनमः । स्याद्रादानुभवरलाकर | শাপলা সল্প उपोद्धात। छ्प्प्थ। मंगलमय मंगरनन्द्‌ः-प्रद परम शान्त दू ॥ पिद्धि शिरोमणि वीर, तरन तारन अशान्त जू॥ १ ॥ निनुबर्‌ पंकन चरण, शरण गहि रहत दिवस निरि ॥ ध्यान क्रियादत्त चित्त रत, इन्द्रिय सदा वि ॥ २॥ ऐसे सतगुरु पज्यश्री,-चिदानन्द महाराज ॥ तिनं विनय युत बन्दना, करे हम पूछत आज ॥ ३॥ ओऔमद्वासण ! वर्तमान समयके नाना ग्रकारके मतमतास्तरोंके भेद और वाद विवाद सुनकर हम दीन निज्ञासुओंके चित्त मलीन और विश्वातहीन हो गये । जिधर गये जिधर देखा जिधर सुना और जिससे पूछा यही कहते सुना कि; हमारा मत इश्वीय और सत्य तथा अनादि है, और सम्पूर्ण मतानुयायी अपनेदी मतसे मोक्षका भाप्त होना कथन कर अन्योन्य मर्तोकी निन्दा करते ओर उनको असत्य वताते हुए पाये गये, जब यह देखा कि अपने तह “सव बडे भौर सचे कदत दै तथा मानते है तो इससे अनुमान क्रिया कि कोई सत्यवादी नहीं, क्योंकि जब अपने मुख अपनाही विरद्‌ बखान कर रहे है, तो किस २ को सच्चा कहा जावे । दूसरी बात यह है कि यदि सबके वचन माननीय ठहराये जायें तौ यह भ्रम रहता है कि इनमें परस्पर द्वेपने प्रवेश कहाँसे किया ! कारण बह कि सचके भेद नहीं दोना चाहिये ओर यदि सबही ठीक मागपर हैं तो जिसका जिसपर विश्वास है वही ठीक है। तो फिर दूसरे मरोका खण्डन भर अपनेका मण्डन करनादी ठीक नहीं ॥ आयः देखा गया है कि जब ये मतवाले अपने मतकी ,सिद्धि करते हैं, तो दूसरे मतोंके ' दोष दिखलाकर ऐसी ऊट्पदाड़ गाथा गाते हैं कि जिसते पूरा २ सण्डन तो होता नहीं केंवछ , फूढ फेंलती ह-यथार्थ खण्दन वद्दी समझा जाता है कि जिसका सण्डन किया जाय उसी-, । का परस्पर विरोध अबछ युक्ति और भरमाणोंसे दिसक्ाकर भरी মতি प्रतिपक्षीका मुस बं- . + दुकर दिया जावे । आज वर्तमान समयमें इस ख़ण्डन मण्डनके झगड़े रगढ़े ऐसे बंद गये




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now