आधुनिक भारतीय परिप्रेक्ष्य में श्री मदभगवत गीता का शैक्षिक निहितार्थ एवं उसकी प्रांसगिकता का एक आलोचनात्मक अध्ययन | A Critical Study Of Educational Implication Of Shri Mad Bhagavad Gita An Its Relevence In Modern India
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
116.94 MB
कुल पष्ठ :
256
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)व्यवहारिक परमार्थ के प्रयोग की यह अद्भुद कला गीता में स्पष्ट परिलक्षित होती
| गीता में ज्ञान और कर्म शब्दों का प्रयोग जिन-जिन अर्थो में हुआ है वह भी
विशेष रहस्यमय है। गीता के कर्म और कर्मयोग तथा ज्ञान और ज्ञान योग दोनों
एक ही वस्तु नहीं हैं।
गीता में जिस पद्धति का निरूपण किया गया है, वह सर्वथा भारतीय और
ऋषि सेवित है तथापि गीता के शैक्षिक विचार परम्परा पर मनन करने पर यह
कहा जा सकता है कि गीता में बताये हुये साधनों के अनुसार आचरण करने का
अधिकार मनुष्य मात्र को ही है। गीता की शिक्षा समस्त मानव जाति के लिये है
किसी खास वर्ग या किसी खास आश्रम के लिये नहीं, वास्तव में यही गीता की
विशेषता है। गीता की शिक्षाओं में जगह-जगह “मानव”, “नर”, “देहमृत ,
'देही” आदि शब्दों का प्रयोग इसी बात को स्पष्ट करने के लिये किया गया है ।
गीता में वर्ण धर्म पर विशेष जोर दिया गया है | जिस वर्ग के लिये जो कर्म निहित
है उसके लिये वे ही कर्म कर्तव्य है|
कर्मभोग के साधन में कर्म की प्रधानता है और स्ववर्णोचित निहित कर्म
करने की विशेष रूप से आज्ञा है। गीता में भक्ति, ज्ञान, कर्म सभी विषयों का
विशद रूप से विवेचन किया गया हैं गीता में समता की बात प्रधान रूप से प्रकट
की गई है। ज्ञान, कर्म एवं भक्ति तीनों में समता की आवश्यकता बतलाई गयी.
है। श्री मद्भगवद् गीता में सम्पूर्ण प्राणी की क्रिया भाव और पदार्थों में अनेकों.
प्रकार से समता की व्याख्या की गई है। सर्वत्र समदृष्टि रखने की शिक्षा प्रदान
की
गयी है | दुख-सुख, लाभ-हानि, निन््दा-स्तुति सभी में समान भाव रखने वाले
प्राणी
में
॑ सच्चा साम्यवादी
| गीता के साम्यवाद और वर्तमानकाल के साम्यवाद
अन्तर है। वर्तमान
मिन काल का साम्यवाद ईश्वर विरोधी है जबकि
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की महत्ता प्रति पादित की गई है। जो समता युक्त पुरूष है वही वास्तव
बड़ा.
गीता का
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