तेलुगु पोतन्ना महाभागवतामु [स्कंध 10-12] | Telugu Potanna Mahabhagwatamu [Skandh 10-12]

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Telugu Potanna Mahabhagwatamu [Skandh 10-12] by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दशम स्कन्ध अध्याध---१ क्षष्पाप---२ अध्याय---३ 1 दिषय-सृचीं (पूर्वाध) 25.480 । मद्भलाचरण; राक्षसों से पीड़ित देवताओं का हरि फी स्तुति फरना और हरि का उन्हें जाश्वासत देकर भेजना; वसुदेव-देवकी-विवाह और आकाशबाणी होना; कंस क्वा आकाशवाणी सुनक्षर वेदकी को सारते के लिए उद्यत होना और वसुदेव द्वारा समझ्ाना; वसुदेव की शर्ते पर फंस का देचकी का वध न कर कठोर कारागृह में रखना। २५-३४ कंस के अत्याचार ते' यादवों का इतस्ततः पलायन और देवकी के छः पुत्रों का क्रमशः कंच के हाथों चध होना; योग-माया-प्रभाव; बलराम क्वी उत्पत्ति; देवकी के गर्म छी स्थिति का वर्णन; ब्रह्मा आदि देवताओों का देवकी-गर्भस्थ स्वामी फी स्तुति करना ॥ २६-१० श्रीकृष्णावतार-प्रसंग-फथन; भीहरि का आविर्साब और उनकी छया का वर्णन; वधुदेष-देवको ह्या हरि फी स्तुति बौर हरि का ভক্ত অন प्रदान करना; वसुदेव द्वारा कृष्ण को ननन्‍द-पशोदा के यहाँ पहुँचाचा জীব उनकी कन्या को लाकर देवको फो देना । ४०-५६ शिञ्यु-उस्पत्ति को पह्रेदारो हारा सुन कंस फा कन्था फो सारने को उद्यतं होना; रम्या हाय भविष्यवाणी करते हुए आकाश मे गमन; कंस का पश्चात्ाप और वसुदेव-देवक्ती को कारागृह से घुक्त फरना; क्षंस द्वारा ऋषि-प्ुप्ति-क्राह्मणों फी हत्या करमे फा भादेश । ५३-६५ गोछुल में कृष्ण-जन्म पर हर्षातिरेक से ग्वालों का आवन्दमरच होना; वघुदेद भौर नन्द का परस्पर वार्तालापं 1 ऽ५-७२ कृष्ण-चधार्थ फंस-प्रेरित पुतवा का गोहझुल में गन; पृतता द्वारा छुष्ण को खोजक्ूर उसे दूध पिलाना; कृष्ण का उसके प्राणों को भी पी लेना; ' गोषियों द्वारा कृष्ण फे लिए दोटका करना और रक्षाकदच कहुचा । ७२-८१ बालक के पृत्यु से बचने पर नरद द्वारा दान-दक्षिणां फरना; बालक कृष्ण , का समोपवतीं शकट छो लात सारफर निराना; कृष्ण हारा तृणावतं अंध्याय---- ४ अध्याय---५ अध्याय---६९ अध्याप---७ अध्याय---८ राक्षत का संहार | ८१-८८ गगे घुति हारा चालकों (बलरास-कृष्ण) फा नामकरण होना; श्ीकृष्ण- ' बलराम फो बाल्य-क्ीड़ाओं का वर्णन; मोपिकाओं क्वा बशोदा से श्रीकृष्ण अध्याय----४ अध्ययय--१० अध्याय--११ ~ के ऊअधरमों की शिकायत करवा; सुद्भक्षण और विश्वडुप-प्रदर्शन भावि का वर्णन; यशोद सीर नन्द का पुवे-जन्-वृत्तान्त ! ५८-१०३ कृष्ण द्वारा दधियाण्ड को फोड़ने पर उस्क्षा पीछा करते हुए गशोदा को उसे पकड़ लेना; यशीदा द्वारा क्रोधित होते हुए उलूखल-बन्धव तपा बमकार्जुन-भंलन आदि छा बर्णन । १०३११९१ परीक्षित्त द्वारा यम्रकार्जुच के विषय में प्रश्य और शुक्त ष्या उत्का वत्तान्त सुनचा; यमक्वार्जुन (चलकबर-सणिग्रीष) द्वारा ष्ण की स्तुति ओर कृष्ण का उन्हें निजधाम को भेजना 1 १११-११६ कृष्ण का विभिन्न लोला-विनोदं करना; नच्द आदिं फा वृस्दादन कौ प्रस्थात फरना; वत्स-पालन; कृष्ण का वत्सासुर ओर बकासुर का तष करता । ११६-१२४




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