आदर्श हिंदी | Aadarsh Hindi

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Aadarsh Hindi by डॉ. स्वर्णकान्ता 'स्वर्णिम' - Dr. Swarnakanta 'Swarnim'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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व्याकरण की उपयोगिता / १७ लगे हाथ एक और बात विशषेषत पंजाबी विद्यार्थियों के लिए लिख देता हूँ । हमने खाना है हमने जाना है तुमने देना है. उसने लेना है भादि रूप पंजाबी ढंग कहकर प्रयोगानहें ठहराएं गए हैँ । मेरी सम्मत्ति में इन्हें ढंग न कहकर अशुद्धि ही कहना चाहिए । जेंसे-- हाथी आती है पुरवी ढंग नहीं वैसे हमने खाना है भी पंजाबी ढंग नहीं । पहले प्रयोग में लिग की गशुद्धि है और दूसरे में कर्ता नही । इंग तो वही कहा जाना चाहिए जो व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध होने पर भी अपनी भाषा की प्रकृति के प्रतिकूल न पड़े और दूसरी किसी भाया में बोला जाता हो जैसे--पनिकट भविष्य में लिखना या बोलना मंग्रेजी का अपना ढंग है और यह हिन्दी व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध भी है निकट्लपास का भविष्य स्‍् आनेवाला समय अर्थात जल्दी । पर यह हिन्दी का ढंग नहीं । हिग्दी का अपना ढंग तो शीघ्र ही है । यही लिखा भीर बोला जाना चाहिए। भले ही दूसरे सीगन्घ साना भौर टट्टी खाना कहा करें पर हमें तो शपथ करना और टट्टो घर हो कहना चाहिए । हाँ हुमने खाना है आदि घावम अशुद्ध कंसे और क्यों हुए ? सुनिए--इन सभी वाक्यों में क्रिया का सामान्य रूप. खाना जाना आदि सामान्य भविष्यत्‌ अर्थ में प्रयुवत हुआ है। जिसके कारण हमने खाना है का अर्थ होता हैं हम खाऐंगे और हमने जाना है का जर्थ होता है हम जाएँगे । भविष्यदथेक किया के साथ कभी तृतीयान्त कर्ता नहीं भाता। जैसे हमने खाएंगे लिखना या बोलना व्याकरण की दृष्टि से अशुद्ध है वैसे हमने खाना आदि वाक्य भी अशुद्ध हैं। होना चाहिए हुमें खाना है हमें जाना है आदि । इन प्रयोगों में राम को चाहिए आदि की भाँति उपपद चतुर्थी विभवित आई है । यह मशुद्धि हुई क्यों ? इसके मैं दो कारण समझता हूँं। एक तो यहूं कि संस्कृत में मस्माभिः भक्षणीयम्‌ लिखा और बोला जाता है । जिसका अमुवाद संस्कृत के पुराने पण्डितों ने हमे सुतीयान्त कर्ता रखकर ही सिखाया है--अस्माभिःन्ल हमने भक्षणीयम्‌ खाना है. तथा वयं भक्षणीया का हमको या हमे खाना है अनुवाद सिखाया 1 इस उदाहरण में कमेंणि प्रस्यय है कम है हमको या. हमें लृतीयान्त कर्ता सिहेन उपरिष्ठातू आक्षिप्त है। जिसका बे होता है हमको या हमें सिंह खा जाएंगा । बस यही संस्कृत व्याकरण के संस्कार हमसे मशुद्धि करा डालते हैं । यद्यपि संस्कृत हिन्दी पंजाबी गुजराती आदि भाषाओं की प्रकृति सवेथा एक ही है । फिर भी इनके व्याकरणों के कुछ-एक नियम स्वतन्त्र भी हूँ । उनका सदा ध्यात रखना चाहिए । दूसरा कारण मैंने सुना है यह हिन्दी का प्रयोग है। इसकी देखा देखी पंजाबी छाती के बल मैंने खाना है मैंने जाना है लिखते और बोलते चले जाते हा यह सीचते तक भी नहीं कि भाषा में छाती के बल काम नहीं चला करता इसमें त्तो खोपड़ी को कष्ठ देने की थोड़ी मायइ्यकता पढ़ती है। मैंने सुना है यह आसननझुत है सामान्य भविष्यत्‌ नहीं । आज से जरा सोच-विचार कर ही इसका प्रयोग कोजिएगा _ नहीं तो वंयाकरण लोग रुष्ट हो जाएंगे ।




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