कादंबरी - परिचय | Kadambari Parichay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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व्शा-वस्तु पड़ जाने से पीछे-पीछे चलती बुई प्रजा को जो रकना पड़ता है और उससे सीड़ के प्राय चुट-वूँट जाते हैं इस प्रकार से वाण की माषा सम्राट बनकर भाव के आगे आसे नहीं चलती । रेलगाड़ी में केवल इंजन में गमन-शक्ति होती है. और साधारश- तया उसकी खींचने की शक्ति का हो परिचय सिलता है । उसके जड़ सिंप्बे सिस्सदाय और परवदा हुए पीछे-पीड़े चलते रहते हैं । इस प्रकार के खिंचाव में हम वस्तु के संपरा अंराको एक साथ समान एरिया में नहीं देख पाते । अर्थात्‌ सामने के हिस्से को चड़ा देखते हैं और उसके पीड़े के सार को छोटा देखते हैं 1 परन्तु नदी के बहाव में गति का स्वरूप ब्यौर ही होता है। वह दानवी नहीं सानवी और प्राकृतिक दोतः है उसमें इंजन वही माँति निप्याण डिस्बों को खींचने बाली कोई वस्तु सबके आगे नहीं रहती चरनू उसमें प्रत्येक बूद गतिशाल होती है जो स्वयं को फैलाकर अपने संपके में आने चाती समर्त वस्तु को फैलने के जिए शरेरित करती हुई प्रवाहित होती है । सहा- कि वास सी साषा इसी प्रकार की पिन्र गतिशीलता धारण किए हुई उस अस्त रस की सतत प्रवर्तित मंद सरल-रेखा के समान है जिसके मभिम सीकरों की प्रगति पिछती समस्त बूंदों की सम्मिदित सचेषता के ही कारण संचाक्तित होती हूँ कार्बूचरी में शब्द अथ तथा कथा सब में ऐसी ही सकुदुम्बिता है। उनमें से प्रत्येक अपना शढ़ अस्तित्व रखते हुए भी दूसरे की परतंत्रता को ही अपनी स्वतंत्रवा के सदन की सिति नहीं बसाता । कार्दबरी-यरिचिय में साषा और कथानक का इस भाँति का संबंध बहुत अधिक प्रत्यक्ष है इस पुस्तक को थह रूप देकर अकाशित करने के तीन उद्देश्य छ




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