प्रार्थना - प्रवचन भाग - 1 | Prarthana - Pravachan Bhag - 1

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Prarthana - Pravachan Bhag - 1  by महात्मा गाँधी - Mahatma Gandhi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राथना-प्रवचन ११ उसका भाग जाना अच्छा नहीं। आखिर वह बहादुर कौमका है। उसे भागनेकी क्या जरूरत ? वह्‌ सोच रहा है कि किस तरह यहांसे जाऊ ? वह काफी कोशिश कर रहा है। वह शराफतसे चलता है। यदि हम भी शराफतसे चलेंगे तो दुनियामें जो कभी नहीं हुआ वह्‌ होनेवाखा है । अगर कोई शराफत न करे, वहशियाना काम करे, तो भी उसको कैसे अपनाया जाय, यह जो सीखना चाहे मुझसे सीखे । वाइसरायने मुझे शुक्र तक बांध रखा है। जवाहर भी मुझे कैदी बनाना चाहते हैं। तीन दिन बाद में सब बातें बता दूंगा। छिपाना कुछ नहीं है; पर होना क्‍या है! मेरे कहनेके मुताबिक तो कुछ होगा नहीं । होगा वही जो कांग्रेस करेगी । मेरी आज चलती कहां है? मेरी चलती तो पंजाब न हुआ होता, न बिहार होता, न नोआखाली। आज कोई मेरी मानता नहीं । मं बहुत छोटा आदमी हूं । हां, एक दिन म हदुस्तानमे बड़ा आदमी था। तब सब मेरी मानते थे, आज तो न कांग्रेस मेरी मानती है, न हिदू ओर न मुसलमान । काग्रेस आज है कहां ? वह तो तितर- बितर हो गई है। मेरा तो अरण्य-रोदन चल रहा है। आज सब मुझे छोड़ सकते हैं। पर ईश्वर मुझे नहीं छोड़ेगा। वह अपने भक्तकी परख कर लेता है। अंग्रेजीमं कहा है कि वह हाउंड आँव दी हेवन' है, वह धर्मका कुत्ता है, यानी धर्मको ढूंढ लेता है। वही मेरी बात सुनेगा तो काफी है। वह ईङ्वर जब आपके हूदयमें आ जायेगा तौ आप वही करेगे जो वह्‌ करायेगा । सकए हमे विचारशील प्राणी रहना चाहिए । थोडी-सी बातपर बकवास शुरू नहीं कर देनी चाहिए । २: হ অসি १९४५७ भाटयो ओौर बहनो, “कल्की तरह प्रार्थनके बीचमें आजमी कोई गडा करनेवाले हों तो




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