रामचरितमानस में रोग तथा उनकी चिकित्सा | Ramacharitamanas Men Rog Tatha Unaki Chikitsa

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Ramacharitamanas Men Rog Tatha Unaki Chikitsa by सुदामा दुबे - Sudama Dube

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ किसी मुण विशेष की निम्नता, माव, क्किति अथवा न्‍्यन विकास की बोर ही नहीं होती, वरन्‌ हन मु्णों की जेब्ठता एवं अत्यधिक उपस्थिति की दिला में मी हो उकती है । स्तः सामान्य गूर्ण कै हन दौनी हर्या पर यह कसामान्यता दिलाई पढ़ती है । फिर मी हमारे अध्ययन कै लक्ष्य मानसिक गौम के केत्रर् 'विकुत लक्षण ही होते हैं, क्योँकि व्यवहार में वमियाजन तम्बन्धी समस्या प्रायः इन्हीं में हुआ करती है । उपयुक्त कार्ण पर क्सामान्यता के ত্বক की व्याख्या बिमिन्‍न दृष्टि- তা से निम्नलिखित आधार पर की गई है :- पराख्यकीय शाधार গজ শি জলির বি জাত গাজা, বত ওলি रजश यवः सततः छः हस दुष्टिकोश के अनुसार किसी मी जनसंख्या कै अधिकाश व्यक्ति हामान्य अणी में बाते हैं । रेवै व्यक्ति जौ बुद्धि, व्यक्तित्व-स्थिएता कया বালান जनुकुलन की बौसत मात्रा बोर दामता উ युक्त होते हैं, उन्हें परामान्‍्य, जिनमें इन र्णा की मात्रा जऔौद्तत से कम हाँती है उन्हें अपामान्य ओर जिन जोसत ते अधिक होती है उन्हें ष्ठ कहै हं | अमियौजना त्क आधार কার খানার বা রা, জারা রা রাজা বাজার বাড? রা রাহা भागा গার বারা বর इद पिद्धान्त कै लुता हव किष ववक्षि कौ उषी सीमा तक साथाम्य कह सकते ह -जिष दीया त्क वह नैकि-वामाक्छि वास्तविकता कै प्रति अमियौ जित अथवा उमे अनुकल हे । इव प्रका इ दिद्वान्त के अनुसार मानसिक क्सामाम्यता का निर्णय मुख्यहप मै सामा कि प्रतिमानां बीर ঈকিদ ভাবি मान्यतां $ भुरा किया जाता है । मेव रासायनिक हम्तुलन ओर मान पक असामान्‍्यतायें मानसिक रौगाँ कै देज मैं जेब-रा|सायमिक हंतुलन जैसे प्रतिमान उपलबध से होगे के काएण अतामान्य मानक प्रतिड़ियाओं के स्वरूप के सम्बन्ध में अत्य भिक मतभेद




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