पंचभूत | Panchbhoot
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.65 MB
कुल पष्ठ :
192
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रवीन्द्रनाथ टैगोर - Ravindranath Tagore
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शहद रत है। जो चास्तवमें अपराध नहीं है वह भी समय-विशेषपर अपराध मालूम होने लगता है। एक कारणसे दुःख असहा हो ज्ञाता है । अनेक वार अपनी तबीयत खराब रहनेके कारण हम दुसरोंकि प्रति अन्याय कर यंठते हैं परम्तु फालकमसे ये दुःख अध्याय और अपराध भूल जाते हैं । इस प्रकार धीरे धीरे ज्यादतीं दूर हो जाती है गौर सिर्फ साधारण यातें रद जाती हैं। उसी- पर हमारा वास्तघिंक स्वत्व है। इसके सिवा हमारे मनमें भानिके दिये .वातें अदा स्मुद आकारमें आती हैं और चली जाती हैं 1. उन सभीकों अतिस्मुट--अर्धाद् असाधारण फर डालनेसे मनकी खुकमारता नए हो जाती है। हमें डायरी रखकर एक छनिम उपा- यसे अपने जीवनकी प्रत्येक लुच्छ चातोंको बड़ी चना डालते हैं ।. गौर कितनी दी छुच्छ घटनाओंको चढ़ानेकी चेप्टाकर उन्हें नष्ट गीर चित कर डालते हैं । सहसा स्त्रोतंस्विनीकों चेतन्य हुम। घह चहुत देरतक चढ़े भाविगके साथ ये वातें कह गयी थीं उनका मुख छाल हो गया।. जरा फिरकर जानूँ मैं ठीक नहीं कद सकती । मेरे समभनेमें भी तो भूल हो सलफती है । दीप्ति कभी किसी विपयमें तनिक भी सकोच नहीं करतीं । उन्दें कोई जोरदार उत्तर देनेके लिये उधत देखकर मैंने कहा--छुमने ठीक समभा है। मैं भी यदी फहनेको था पर मैं. सुम्दारी तराद कद सकता था कि नहीं इसमें सन्देह है । श्रीमती
User Reviews
No Reviews | Add Yours...