पंचभूत | Panchbhoot

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Panchbhoot by श्री रविन्द्रनाथ ठाकुर - Shree Ravindranath Thakur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शहद रत है। जो चास्तवमें अपराध नहीं है वह भी समय-विशेषपर अपराध मालूम होने लगता है। एक कारणसे दुःख असहा हो ज्ञाता है । अनेक वार अपनी तबीयत खराब रहनेके कारण हम दुसरोंकि प्रति अन्याय कर यंठते हैं परम्तु फालकमसे ये दुःख अध्याय और अपराध भूल जाते हैं । इस प्रकार धीरे धीरे ज्यादतीं दूर हो जाती है गौर सिर्फ साधारण यातें रद जाती हैं। उसी- पर हमारा वास्तघिंक स्वत्व है। इसके सिवा हमारे मनमें भानिके दिये .वातें अदा स्मुद आकारमें आती हैं और चली जाती हैं 1. उन सभीकों अतिस्मुट--अर्धाद्‌ असाधारण फर डालनेसे मनकी खुकमारता नए हो जाती है। हमें डायरी रखकर एक छनिम उपा- यसे अपने जीवनकी प्रत्येक लुच्छ चातोंको बड़ी चना डालते हैं ।. गौर कितनी दी छुच्छ घटनाओंको चढ़ानेकी चेप्टाकर उन्हें नष्ट गीर चित कर डालते हैं । सहसा स्त्रोतंस्विनीकों चेतन्य हुम। घह चहुत देरतक चढ़े भाविगके साथ ये वातें कह गयी थीं उनका मुख छाल हो गया।. जरा फिरकर जानूँ मैं ठीक नहीं कद सकती । मेरे समभनेमें भी तो भूल हो सलफती है । दीप्ति कभी किसी विपयमें तनिक भी सकोच नहीं करतीं । उन्दें कोई जोरदार उत्तर देनेके लिये उधत देखकर मैंने कहा--छुमने ठीक समभा है। मैं भी यदी फहनेको था पर मैं. सुम्दारी तराद कद सकता था कि नहीं इसमें सन्देह है । श्रीमती




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