ब्रिहद्द्रिव्यसंग्रह: तथा लघुद्रव्यसंग्रह | Brihaddrivyasangrah Tatha Laghudrivyasangrah
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
258
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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संस्कृत टीकाकार ब्रह्मदेव _
वरद् द्रव्य संग्रह के सस्कृत टीकाकार श्री ब्रह्मदेव सूरि है । इन्होंने अपनी सुरम्य-सुललित भाषा
के द्वारा मात्र ५5 गाथाओ के लघु ग्रन्थ को एक विशाल रूप दिया है । यह कहने में अत्युक्ति नहीं है.
कि बृहद् द्रव्य संग्रह का महत्व ब्रह्मदेव की सस्कृृत टीका के द्वारा ही वृद्धिगत हुआ है । प्रकृत प्रमेय को
समर्थित करने के लिये इन्होने बीसो ग्रन्थों के उद्धरण दिये है तथा अनेक दृष्टान्त देकर गहन विषय को
बुद्धि गम्य बनाया है। प्रथम तो इन्होने खण्डान्वय के द्वारा गाथा-का मूल अर्थ स्पष्ट किया है तदनन्तर
विशेष विवेचन के द्वारा ग्रन्थ को विस्तृत किया है। ये अनेकान्त के तलस्पर्शी विद्वात् थे और किस नय
से कहा कैसा विवेचन है यह अच्छी तरह समभते थे। इन्होंने प्रकरण पाकर बारह भावनाओं, दशधर्मो
ध्यान तथा तीन लोको के अन्तर्गंत नरक, मध्यमलोक और ऊध्वलोक का विस्तृत वर्णान किया है।
मोक्ष मार्ग के प्रकरण में चारध्यानों का भी बहुत सुन्दर वर्णन किया है। आपकी कुतूहल पूर्ण भाषा
का एक नमूना देखिये :--
अत्राह शिष्यः-रागद्रं षादयः किं कमंजनिताः किं जीत्र जनिता, इति ? तव्रोत्तरम्-
स्त्री पुरुष संयोगोत्पन्न पत्र इव, सुधाहरिद्रा संयोगोत्पन्न वणंविश्ेष इवोभय सयोगजनिता
इति । पदचान्नय विवक्षावशेन विवक्षितेक देश शुद्ध निश्चयेन कर्मजनिता भण्यन्ते । तथैवा
शुद्ध निश्चयेत जीवर्जानता इति । स चाशुद्धनिश्चय: शुद्धनिश्चया पेक्षया व्यवहार एवं।
अथ मतम्-साक्नाच्छ्रद्धनिश्चयेन कस्येतिपृच्छामो वयम् । तत्रोत्तरम् साक्षाच्छरुढनिस्चयेन स्त्री
पुरुषसंयोग रहित पुत्रस्मेव, सुधाहरिद्रासंयोगरहितरङ्गविशेषस्येव तेषामूत्त्तिरेव नास्ति
कथमूत्तर प्रयच्छामः इति | ( पृष्ठ १७७--१७८ )
अर्थ-शिष्य पूछता है-राग-द्व ष आदि कर्मो से उत्पन्न हुए है या जीव से ” इसका उत्तर-स्त्री और
पुरुष इन दोनो के सयोग से उत्पन्न हुए पुत्र के समान चूना तथा हल्दी इन दोनो के मेल से उत्पन्न हुए
लाल र॒ग को तरह राग द्व प आदि, जीव ओर कर्म इस दोनो के वियोग से उत्पन्न हुए है। नयकी विवक्षा
के अनुसार, विवक्षित एक देश शुद्ध निश्चय से तो राग हू घ॒ कर्म जनित कहलाते है । अशुद्र निश्चय नय
से जीव जनित कहलाते है । यह अशुद्ध निश्चयनय, शुद्ध निश्चय की अपेक्षा से व्यवहार नय ही है।
शड़ा--साक्षात् शुद्ध निश्चय नय से ये राग दव ष किसके है, ऐसा हम पूछते है ”? समाधान-स्त्री और
पुरुष के संयोग बिना पुत्र की अनुत्पत्ति की भांति, और चूना व हल्दी के सयोग बिना लाल रंग की
अनुत्पत्ति के समानः साक्षातु शुद्ध निर्वय नय की अपेक्षा से इन राग द्वं प की उत्पत्ति ही नही होती इस-
लिये हम तुम्हारे प्रज्न का उत्तरहौ कसे देवे ।
किस गुणरथान मे कौन उपयोग होता है ? पुण्य उपादेय है या हेय ? कार्य की सिद्धि मे निमित्त और
उपादान की आवश्यकता क्या हूँ ? तेरहवे गुणस्थान में सम्यग्दशन ज्ञान चारित्र की पूर्णाता हो जाने पर
भी तत्काल मोक्ष क्यों नही होता है आदि विवाद ग्रस्त विषयो पर भी अच्छा प्रकाश डाला है ।
वृहद् द्रव्य संग्रह् के समान योगीन्द्रदेव के परमात्म प्रकाज्ञ पर भी आपकी सुन्दर वर्ति हं! यद्यपि
परमात्म प्रकाश, निश्चय नय प्रधान रचना हुँ तो भी आपने तय विवक्षा के अनुसार दोनो नयोँ की
संयति वेठते हृए दिदेचन किया ह |
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