जवान की दीपावली | Jawan Ki Deepawali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
134
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ७ )
श्रीपत पर अब तो भारत स्वतन्न हो चुका है) |
राजूसिह मित्र ! तुम्हें आज क्या हो गया है ? पढे-लिखे होकेर-
ऐसी बाते कर रहे हो ? क्या तुम नही जानते कि श्राज
हमारे पडौसी हमारी स्वतन्नता पर घात लगाये बंठे है।
हमे श्राज स्वतत्रता की रक्षा करनी है, लोकतन्त्रीय
व्यवस्था को सुदृढ बनाना है ।
श्रीपत ( यकायक रेडियो की भ्रोर देखकर } अरे ! रेडियो भी
बज रहा है। बन्द कर दू ?
राजूसह ( भाव बदल कर, कुछ मुस्करा कर ) देखा श्रीपत तुमने,
क्या अब भी नहीं समझे कि युद्ध की अनुपम बातो को
सुनकर जब श्रोता इतना लीन हो सकता है कि पास वज
रहे रेडियो के गानो को भी नही सुन सके तो फिर बत-
लामो अलौकिक युद्ध-गान का प्रत्यक्ष श्रवण व अनुभव
करने वाला क्या अन्य बाते सोच सकता है ”
+हावीरसिह (हस कर) रेडियो तो अपनी ही अपनी कहता है, दूसरो
की नही सुनता । हजारो व्यक्ति भी या बन्स मोर कहे
तो भी नही सुनता।
[ इस पर सब हसते है। श्रीपत रेडियो बन्द करने के
लिए उठता है, इतने मे गडगडाहट की आवाज आती है
और तत्काल कुछ अस्पष्ट किन्तु जोर की कोई घोषणा
सुनाई देती है, इस पर राजूसिंह शीघ्र ही उसके पास
पहुच जाता है । ]
राजूसिहु ( रेडियो के पास खडे होकर ध्यान से सुनने का उपक्रम
करते हुए ) > है ०००० यह क्या %
| रेडियो से स्पष्ट घोषणा सुनाई देती है । ]
श्रीपत क्या है भइया ?
राजूसिह (चप रहने का इशारा करके सुनताहै) 'अभी अभी
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