वन्दना | Vandana
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
160
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)। फोड़ और हड़ताल आदि तो एक आम चीज हौ गयी है ।
अध्यापकों की मारपीट करना भी मामूली सी वात हो गई
हैं ।प्रध्यापक तो क्या ? पुलिस और सरकारी-तंत्र भी
इनके रोक थाम में श्रसफल हो रहा है | शिक्षा विभाग
की ओर से वर्तमान शिक्षा पद्धति में सुधार के लिए कई
काम । वि आयोग गठित किये गये और उन सव की प्राय:यही राय रही
| ডাল धार्मिक शि क्षण शिविर कि शिक्षा में नीति और धर्म का स्थान होना ही चाहिये ।
की
ग्रावश्यकता क्यो?
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# श्री ওরন্যন্তিক্রুল লিল
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धर कुद वर्षो से शिक्षा का प्रचार तो बहुत
बढ़ गया है पर घामिक शिक्षण प्रायः उठ सा गया है।
` इसका एक प्रधान कारण तो यह है कि अधिकांश शिक्षण
संस्थाएं सरकारी ऐड लेना चाहती है और भारत सरकार -
ने धर्म निरपेक्ष राज्य की उल्टी गंगा वहादी है। उसका
उद्द श्य तो यह था कि किसी घर्म-विशेष का शिक्षरा देकर
उपे प्रोत्साहित नहीं किया जाय क्योंकि साम्प्रदायिक
वातो को लेकर एकता खण्डित होती रहती दहै! पर
इसका अर्थ यह ले लिया गया कि धर्म का शिक्षण दिया
ही नहीं जाय इसीका यह् भयंकर परिणाम भारत -
सरकार और शिक्षण संस्थाओं को भुगतना पड़ रहा है.
कि विद्यार्थी दिनों दिन उच्छंखल होते जा रहे हैं।
उनमें अनेतिक बातों का अधिक प्रचार हो रहा है | तोड़-
वन्दना }
उस अ्रकुश के उठ जाने से स्वेच्छाचार और बुरी
` -प्रदत्तियां वढ्ने लगी हैँ । भ्राप किसी भी संस्कृत या वामक
विद्यालय की, आधुनिक हिन्दी-अ्र ग्रे जी पढ़ाये जाने वाले
विद्यालयों से तुलना करिये तो दोनों के विनय-व्यवहार
अनुशासन एवं संस्कार आदि में वहुत बड़ा अ्रन्तर मिलेगा ।
यह इस वात का ज्वलत और प्रवल प्रमाण है कि जहां
जहां नीति और घर्मं की शिक्षा दी जाती है, वहां की
छात्र-छात्रायें विगीत और अनुशासित तथा सुसंस्कार
वाली अधिक मिलेंगी । छात्रों की श्रपेक्षा छात्राओं में
नम्नता अधिक मिलेगी । क्योंकि परंपरागत संस्कारों का
प्रभाव उन पर अधिक होता है |
नेतिक और घामिक शिक्षा की ओर माता-पिताञ्रों
का भी अव वसा लक्ष्य नहीं रहा है जैसा कि कुछ वर्षो
'पहले था। घर के वातावरण में वहुत अन्तर आ गया है।
बच्चों को जो घर में संस्कार मिलते थे, वे भी नहीं मिल
रहे हैं। इधर विद्यार्थियों पर पाख्यक्रम का वोफ इतना
बढ़ गया है कि धार्मिक शिक्षण के लिए यह कहकर टाल
दिया जाता है कि उन्हे उसके लिए समय ही कहां है ?
पर जब अन्य ऐसे इतने विपयों का शिक्षण दिया जाता
है, जिनमें से कुछ का तो आगे चलकर कोई उपयोग ही
नहीं होता तो केवल नैतिक एवं घामिक शिक्षण के
लिए समय की कमी वतलाना, उचित नहीं लगता। अन्य
विपयों के 'पीरियड' में से पांच सात -मिनट कम करने
से ही नैतिक एवं घामिक शिक्षरा के लिए एक पीरियड
सहज ही में निकल जाता है ।-पर सब से बड़ी वात तो यह
है कि जब तक वह अनिवाय न हो और उसके पास-फेल
व नम्बरों का प्रभाव अंतिम परीक्षा फल पर न॒ पड़ेगा,
वहां तक छात्र -छात्राएं नैतिक व घाभिक शिक्षण के लिए
मनो योग नहीं दंगें। श्रत: शिक्षा विभाग ने जो साधारण
(३
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