मानव और संस्कृति | Manav Aur Sanskriti

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Manav Aur Sanskriti by श्यामचरण दुबे - Shyamcharan Dubey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मानव का अध्ययन १७ | ৮ से संस्कृति हम उन सब व्यवहार-प्रकारों की समग्रता को कहते हैं जिन्हें मानव अपने सामाजिक जीवन में सीखता है रग, रूप आदि की मति संस्कृति मानव को प्रकृति की देन नहीं है । संस्कृति सामाजिक आवश्यकताओं द्वारा जनित मानव का आविष्कार है। मनुष्य संस्कृति में जन्म लेता है, संस्कृतिसदहित जन्म नहीं लेता । शारीरिक विशेषताओं की भाँति संस्कृति प्रजनन के माध्यम से व्यवित को नहीं मिलती; सामाजिक जीवन मं अनिवायं संस्कृतिकरण की प्रक्रिया से व्यक्ति उसे ग्रहण करता है । समाज की परपरा संस्कृति को जीवित रखती है । संस्कृति के अंतगंत मानव के आविष्कार, निर्माणि-कला,संस्थाए, सामाजिक संगठन, कला, साहित्य, धर्म, विचार आदि विषय आते हैं । सांस्कृतिक नृतत्व का उद्देश्य अपनी विशिप्ट अध्ययन-प्रणाली द्वारा मायव-जाति की भिन्‍न-भिन्‍न शाखाओं और समूहों की इसी संस्कृति का अध्ययन है । सामाजिक नृतत्व के अंतर्गत सामाजिक तथा राजकीय संगठन, न्याय-व्यवस्था आदि आते हँ । संस्कृतिक नृतत्व का क्षेत्र अधिक व्यापक ই । सामाजिक नृतत्व उसका एक महत्त्वपूर्ण भाग है । समाज-व्यवस्या के अतिरिक्त आविष्कार, अथं-व्यवस्था, कला, साहित्य, विश्वास आदि का अध्ययन भी सांस्कृतिक नृतत्व के विषय-क्षेत्र में है । इस तरह नृतत्व को हम प्राणी-विज्ञान कौ एक विशेष शाखा मान सकते हैं । नृतत्व के विशुद्ध प्राणी-झास्त्रीय पक्षों के अतिरिक्त, इस विज्ञान के ऐति- हासिक, मनोव॑ज्ञानिक और दाशेनिक तीनों पक्ष महत्त्वपूर्ण हैं। ऐतिहासिक अध्ययन के रूप में नृतत्व मानव-जीवन के प्रत्येक पक्ष के विकास का अध्ययन कर कालान्तर मेँ संस्कृतियों मे होने वार परिवतंन-परिव्धंन का विदररेषण करता है ! सामाजिक व्यवहारो के मूठ ज्ञोतों तथा व्यवित को समाज मे उसका स्थान दिलाने मे संस्कृति के प्रभावों का अध्ययन करने वाले विज्ञान के रूप में हमें नृतत्व का मनोवेज्ञानिक पक्ष स्पष्ट दीख पड़ता है । जीवन-दर्शन तथा मूल्य, जिन पर मानव- जीवन आशितं रहता है, बाह्य जगत्‌ के प्रति दृष्टिकोण, समाज और संस्थाओं के अन्तगंत आदक्षं ओौर यथायथं संबंध, आदि समस्याओं पर विचार करके नृतत्व हमारे सम्मुख एक दाशेनिक अध्ययन के रूप में आता है ! देश-देश के निवासियों का रहन-सहन, उनके रीति-रिवाज, धर्म और विश्वासों आदि के संबंध में जानने की मानव-हृदय में सदा से जिज्ञासा की भावना रही है, और इसी भावना में नृतत्व के जन्म का रहस्य निहित है । प्राचीन काल से ही ऐसे तथ्यों का संग्रह होता रहा है जो विचित्र कथा से भी अधिक रोमांचकारी और रहस्यमय प्रतीत होते थे । पर्यटक, सेनिक और व्यापारी देद्ष-विदेद की अपनी यात्राओं में वहाँ के सामाजिक तथा घामिक जीवन के संबंध मे मादचयं- मा० सं०--२




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