दिग्विजय-भूषण | Digvijay-Bhushan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
30 MB
कुल पष्ठ :
799
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand){ १२}
महाराज के अल्प वयस्क होने से राज्य का सारा प्रतंच লাগত नझछ লি के
हाथ में चत्मा गया | उन्होंने अपना एकाविकार स्थिर सबने के उद्देश्य से सज्य फ्े
दितैधी कई पुराने कर्मचारियों को पृथक करके उनके स्थान पर सहासन जी श्रामो
प्राप्त किये बिना ही अपने समथक्र लोगों की नियुक्त कर दिया | इससा ही नहीं
मद्दाराज की व्यक्तिगत सेवा के किए तैनात पाँच আআলিমন্ম অনন্ত পা শিল্পা
दिये गये । दिग्विजय सिंह इस अवज्ञापूर्ण आचरण से तमतमा उठे । उन्होंने মা
तण अपने शक्तिशाली किंदु सवा मिद्रोद्दी नाथव को दंड देने का निश्चय कर लिया |
सेना के उच्च अधिकारियों तथा सिव्रद्दियों की नकसिं का समयक जानकर उन्होंने
ग्पने दो विश्वासपानत्र सिपाहियो--रामआासरे तिवारी तथा ऊबीविरि गीसाई
को लेकर नछसिंह के धर पर रात में खाबा किया और उन्हें भंदी बना लिया |
प्रातः काल नाथब तथा उनके कुट्ठम्बियों के बहुत अनुनय विनय करने पर ३०
इजार रुपये जुर्माना वसूल काके उन्हें मुक्त कर दिया। ললনিক ন स्वाभि
की शपथ की | इसके वाद उन्हें पुनः पूर्व पद दें दिया गया | किले मनीमाहित्य
चरता रहा । मशासिंद को भय रूगा रहता था कि राजा पुन; कोई ने काई बहाना
निकाल कर उन्हें दंडित करेंगे । अतः एक रात को अपने कुठुम्म संगीत वे भाग
खड़े हुए | उनके स्थान पर थेजाधर सिंह नायब बने |
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दो०--जेनासायन भूव तथ, भगे नापके आत्त
रामचंद सम লাক निधि, सोह रूप सोह गाव ॥
ची०--मातु भक्ति हिरदे निज ठाना | अंबर कछु दूलर नहिं जाना।
नदि जे कदु তাজ জা লীলা । निसु दिन करें सातु की सेवा 11
राजनीति बहु विधि समुझावा । जननी भे बस हुवे न आया ।
भये ग्रयर काजी दुखदायक । नहिं ভু কী ই উই ভায়ক্ক ॥
इद्दों भूप में कछू दुखारी । सो बेवरा का कह्ों सुरारी ।
सरु भिरि कियो घात बिस््वासा। सुरपुर गे सूप सर्जि करा क्षाप्ता ॥
तब परप चिन्द् हुए हैं, कीम्ड सकाचट राज ।
नि ननन भाद ख्ख, जेसो कीन्हो काज ॥
---विम्विजिव्र चंपू ( इस्तछिखित )>>पत्र ५२.१३
१. पे देखे वात्र सोई । तीनि पुरुष संस अवर ने कोई ।
जौन तीनि से किश्या खाये। रदि न गये एको सह पये;
एक राम आसरे तिवारी | কৃ জগ্বীহিহি भट भास}
दिग्बिश्नय प्रकाश, पू० २४
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