ईमानवाले | Emanvale

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Emanvale by के. पी. अग्रवाल - K. P. Agrawal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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19 # इमानवाले इतना स्पष्ट और खुला बढ़ावा दिया जाता है तो स्पष्ट है कि वहां बहुलता और विविधता पास भी नहीं फटक सकती। सारा का सारा इस्लामी इतिहास और वर्तमान साक्षी है कि इस्लाम सभी पर मात्र अपना ही मार्ग थोंपने में विश्वास रखता है। उत्तमँ “नना यन्धाः” बाली भावना को कहीं भी स्वीकार नहीं किया जाता ¦ वह केक्ल एक्‌ मार्ग की ही कते करता है जित्तकीं जानकारी केवत इस्लाम के इण्डाबरदारों को ही है। जहां एकलता फी पुसी नकासन्मक भावना को प्रश्नय ही नहीं बढ़ावा भी दिया जाता हो वहां परराष्ट्रपूणा (जीनोफोबिया) न जन्ये, ऐसा हो ही नहीं सकता। इस संदर्भ में ही नहीं है। इसी के साथ एक तथ्य यह भी है कि कुरान में इस प्रकार के तथा इससे भी अधिक रक्तपिपासु संदर्भो की कमी नही है। वास्तव में इस्लाम में विस्तारवादी पुट आरम्भ से ही रहा है। स्वयं पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब ने अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए कई युद्ध किए। अन्य पंथों के स्थापको अथवा धर्मगुरुओं द्वारा साम्राज्य स्थापित करने अथवा उनके विस्तार के लिये युद्ध करने के उदाहरण इतिहास में किसी महत्त्वपूर्ण स्तर पर तो नहीं ही मिलते। इस्लाम के मतावल्म्बियों के लिए उनका यही व्यवहार आने वाले समय में विस्तारवाद तथा परराष्ट्रगूणा का आधार बना। इस विस्तारवाद का एक नकारात्मक पहलू यह भी था कि इसमें युद्ध की किसी नैतिक व्यवहार संहिता का अभाव था। वास्तव में अभाव से भी अधिक उसे नकार देने का कारक महत्त्वपूर्ण था। यह इस्लाम की रीति-नीति और क्रियान्वयन दोनों ही में समान रूप से स्पष्ट होने वाला कारक है। जहां कुरान स्वयं घोर हिंसात्मकं आचरण को यद्या देती दै, वहीं स्वय पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब का आचरण और उनके बाद के इस्लामी नेतृत्व द्वारा इन तीनों कारकों के अनुसार इस्लाम का विस्तार किया जाना इसी दिशा में इंगित करता है। इस्लामी विस्तारवाद का सर्वप्रथम शिकार उस समय का प्रवलित अरबी पंथ, उस काल की अरबी परम्पराएं और तत्कालीन अरबी लोग सभी हुए। उस समय काबा के देवालय में स्थापित तीन सी साठ देवी-देवताओं की मूर्तियां पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब ने स्वर्य ही तुड़वा या जलवा डाली थीं। उसी समय की अरबी मान्यताओं और परम्पराओं का केबल नकारात्मक चित्रण हो तत्कालीन तथा परवर्ती मुसलमान विद्वानों ने किया डै1 इस्लाम के उद्भव से पूर्व अरब में देवियों की भी पूजा की जाती थी और अल उजा, अल लात तथा अल ममत नाम की तीन प्रमुख देवियों के विषय में जानकारी मिलती भी है। इससे व्पष्ट है कि महिलाओं का स्थान उस काल के अरबी समाज मैं परवर्ती मुस्लिम काज़ से अच्छा रहा होगा। इस्लाम ने न केवल देवियों की पूजा पर प्रतिबंध लगा दिया; अपितु मुस्लिम समाज में नारी का स्थान भी पहले से कहीं नीचे ला दिया। रूढ़िवादी इस्लामी समुदायों में नारी का स्थान समस्त विश्व के लिए आज भी चिन्ता का विषय बना हुआ है। हां, यह अवश्य है कि इस्लामी कृपा पर जीवित कम्युनिस्टों के नारी आन्दोलन इन तथ्यों की घोर अनदेखी करते हैं और इस्लामी समाजों में नारी की घोर पीड़ा से अपने राजनीतिक स्वार्थों के चलते मुख मोड़े रहते हैं। इस्लाम के जन्म के साथ ही परराष्ट्रपूणा को जो सैलाब चला उसने कुछ ही समय में महान ईरानी सभ्यता, मध्य एशिया की जनजातियों तथा राज्यों और यूरोप में स्पेन तक के दत्र को तबाह कर दला जहा-जष्ठा ये इस्लामी लड़ठाके गए इन्होंने न জল ভতা আয




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