बरगद की बेटी | Bargad Ki Beti

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Bargad Ki Beti by उपेन्द्र नाथ अश्क - UpendraNath Ashak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बरगद की बेटी दिये गये हैं, एक चुनोती ओर हकार है, इसलिए उस में वीर-रस का. एक्र-रसता पुष्ट है। बरगद की बेटी? छोटी सही परन्तु पूरी कथा है, कई घटनाओं का समन्वय है और रस-मेद के बिना वह पूर्ण न.हो सकती थी। बरगद की बेटी? बहु-रस है | कविता भावना मात्र से अपनी अभिव्यक्ति कर सकती हे | कहानी चाहे पद्मयमय अ्रथवा कविता हीं हो, अशरीर रह कर व्यक्त नहीं हो सकती | (बरगद की बेटी? समुचित रूप से सशरीर होकर व्यक्त हुई है। अश्क ने अपने शब्द-चित्रों ओर माव- श्रमिव्यक्ति में गहराई श्रोर व्यापकता दोनों का ही बहुत अच्छा परिचय दिया है। लहरां कवि के ओठों को खोल कर स्वयं ही नहीं फूट पड़ी है, उस पर भ्रम करिया गया है। लेखक की सफलता यह है कि वह पद- रचना और कथा दोनों ही दृष्टियों से, गढ़ी हुईं नहीं, स्वाभाविक जान पड़ती है। लगता है जैसे ग्राम्या लहरां की सरलता आप से आप अश्क की बोली में फूट पड़ी है-- उर्दू शायरी की चुस्ती और मंजी हुई शैली से हिन्दी को अनुप्राणित कर ! নভব্যাই उसके अंगों की सावन की सरि तूफानी । या खेत बाग, बेले# वीराने परिचित उसके गानों से मादकता के द्रात्ञासव में डवे तरल तरानों से। या प्रकतिं-परी, सी वह तन्वंगी उडती ज्डती जाती थी #जहाँ गाये-भेंसे बांधी जाती हैं। १६




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