जापान की सैर | Japan Ki Sair

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Japan Ki Sair by रामकृष्ण बजाज - Ramkrishn Bajaj

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रामकृष्ण बजाज - Ramkrishn Bajaj

Add Infomation AboutRamkrishn Bajaj

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
रगून पहुचे १३ लेती है । यदि दुनिया के दूसरे मुल्को की महिलाएं भी रंगूत्त की अपनी बहनो की नकल करने लग जाय तो पुरुषों के लिए एक बहुत बड़ा सकट और प्रतियोगिता उत्पन्न हो जाने का पूरा-पुरा डर हो जायगा । जिस प्रकार हमारे देश में होली होती है, उसी प्रकार वर्मा में जल-उत्सव मनाया जाता है। तेज गर्मियों के वाद, वर्षा-ऋतु के श्रारभकाल से कुछ पहले यह उत्सव श्राता है । सब लोग वर्पा रानी का हादिक स्वागत करने को तैयार हो जाते हें । तीन-चार दिन तक दप्तर वगेरा वद-से रहते हुं । रास्ते-चलते हर किसी जाने-भ्रनजाने व्यक्ति को पानी से तर कर दिया जाता है । ग्रपने यहां की तरह वहां पानी से रग डालने का रिवाज नही है। सड़कों पर नल के जोड (कनेक्शन) खोल लिये जाते है, जिससे इन दिनों सडको पर पानी-ही-पानी दिखाई देता है। घरो में नहाने के लिए पानी खरीदकर लाना पडता है, पर यह सार्वजनिक स्नान जरूर मुफ्त हो जाता हं । हम लोग वहा पहुचे उसके कुछ ही रोज पहले जो जल- उत्सव वहा हुआ था उससे श्री जवाहरलाल नेहरू ने भी वाडुग जाते समय भाग लिया था। इससे वहा के लोगो में बड़ा उत्साह धा। जल-उत्सबव के पर्व पर वर्मी लोग पारस्परिक वं रभाव भूल जाते हैं; रीर उस खुनी श्रौर मेल-मिलाप के नए वातावरण मे कम्र सनाया भी तय हो जाती है । जितना वडा यह उत्सव ह.उतने ही शाधिक उत्ताह और हुए से वर्मी लोग इरे मनाते हे ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now