बबूल की महक | Babul Ki Mahak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.36 MB
कुल पष्ठ :
114
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शिक्डी-शू;
कृष्णकुमार फ्रौशिफक
अमलम और अरविन्द की दोस्ती को कोई ज्यादा समय नहीं हुआ था । असलम
तो इसी शहर का रहने वाला था । उसके दिता ठेकेदार है। अरविन्द के पिता जिला जन-
सम्पर्क अधिकारी मे पद पर दो वर्प पूर्व ही स्यानान्तरित होकर आये थे । दोनों सातवी के
विद्यार्थी थे और आपस मे खूब परती थी । पढाई में तेज थे, खेल के शौकीन 4 हर बात में
एक-रे । दोपहर का नाइता तक साथ बैठकर करते ।
एक दिन शाम को, स्कूल के खेल-मेदान में लडके वुद्ती कर रहे थे । जय शी कोई
चित होता, आसमान तालियो और सीटियो की आावाजों से शूज उठता । इब्राहिम और
रमेश मे शुर्ती लड़ी । दर्शनसिह और सुभापदास ने, राम और नरेन्द्र ने, यक्रेश और
नीलाभ ने तथा इसी प्रकार कई जोड़ों ने कुदती लड़ी । एक कुश्ती पूरी होती तब तक दूसरा
जोडा आतुर हो जाता ।
रमेश मे असलम से कहा, “क्यों मिया ! तुम नहीं लड़ोगे कुदनी ?”
“कौन लडेगा मेरे साथ ?” असलम ने जांघ पर ताल ठोककर पूछा ।
नीलाभ ने अरविन्द की पोठ ठोको, “भिड़जा पडित मौलवी से ।””
“नहीं, अरविन्द से बुइ्तो नहीं लड़ा ।” असलम के मन में प्यार उमड़ रहा था !
हो गई भिण्डो-भू, नाम सुनते ही।” रमेश ने ताना कस दिया ।
यह बात नहीं है।” असलम ने सफाई देनी चाही ।
तो बया बात है? वई स्वर एक साय फूटे ।
“असलम कुछ बोले, इससे पहले ही रमेश में नारे बाजी सुरू कर दी “असलम हो ४”
सभी चित्साये, “भिष्डी भू” दर
किसे
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